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With this resolve, when the night ended and the dawn broke,
so on up to... with the brilliant sun, ascetic Skandak came to Shraman Bhagavan Mahavir and after paying homage and obeisance... and so on fup to... commenced worship.
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vow of Padapopagaman Santhara (tree like end) and spend my time without desiring for death.
४९. 'खंदया !' इ समणे भगवं महावीरे खंदयं अणगारं एवं वयासी-से नूणं तव खंदया ! पुव्वरत्तावरत्त काल समयंसि जाव (सु. ४८) जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव ( सु. १७) समुपज्जत्था - 'एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विपुलेणं तं चेव जाव (सु. ४८) कालं
5 अणवकंखमाणस्स विहरित्तए त्ति कट्टु' एवं संपेहेसि, संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभायाए जाव जलंते जेणेव मम अंतिए तेणेव हव्यमागए। से नूणं खंदया ! अट्ठे समट्ठे ?
हंता, अस्थि ।
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अहं देवाप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।
४९. 'हे स्कन्दक !' इस प्रकार सम्बोधित करके श्रमण भगवान महावीर ने स्कन्दक अनगार
प्रकार कहा- स्कन्दक ! रात्रि के पिछले पहर में धर्म जागरणा करते हुए तुम्हें इस प्रकार का अध्यवसाय
5 यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ कि "इस उदार यावत् महाप्रभावशाली तपश्चरण से मेरा शरीर अब कृश हो 5 गया है, यावत् अब मैं संलेखना - संथारा करके मृत्यु की आकांक्षा न करके पादपोपगमन अनशन करूँ।” ऐसा विचार करके प्रातःकाल सूर्योदय होने पर तुम मेरे पास आए हो। हे स्कन्दक ! क्या यह सत्य है ?”
स्कन्दक अनगार ने कहा- हाँ, भगवन् ! यह सत्य है।
भगवान ने कहा- हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो; इस कार्य में विलम्ब मत करो।
49. “O Skandak !” Addressing thus, Shraman Bhagavan Mahavir said to ascetic Skandak - "Skandak ! Around the last quarter of the night, while doing religious studies you had an inspiration (adhyavasaya), ... and
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5 so on up to... resolve (sankalp), 'as a consequence of the said austerities,
5 which were free of expectations (udaar)... and so on up to... severe, I have
become dehydrated... and so on up to... take the ultimate vow (Samlekhana) and the vow of Padapopagaman Santhara (tree like end).'
With this resolve you have come to me at dawn. O Skandak ! Is it correct ?” Ascetic Skandak said-Yes, Bhagavan! It is so.
Bhagavan said-"Beloved of gods! Do as you please and avoid languor when doing a good deed."
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५०. तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ० जाव हयहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ जाव नमसित्ता
द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक
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Second Shatak: First Lesson
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