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955555555555555555555555555555555555 म स्कन्दक अनगार का समाधिमरण MEDITATIONAL DEATH OF ASCETIC SKANDAK
४७. तेणं कालेणं तेण समएणं रायगिहे नगरे जाव समोसरणं जाव परिसा पडिगया। म ४७. उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी राजगृह नगर में पधारे। समवसरण
की रचना हुई। यावत् जनता भगवान का धर्मोपदेश सुनकर वापस लौट गई। fi 47. During that period of time there was a city called Rajagriha... and _so on up to... Bhagavan gave his sermon. People dispersed.
४८. तए णं तस्स खंदयस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्म जागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए जाव समुप्पज्जित्था-'एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं जाव (सु. ४६) किसे धमणिसंतए जाते जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्ठामि, जाव गिलामि, जाव (सु. ४६) एवामेव अहं पि ससई गच्छामि, ससई चिट्ठामि, तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए
पुरिसक्कारपरक्कमे तं जावता मे अत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे जाव य मे धम्मोवदेसए म समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल
कोमलुम्मिल्लियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोयप्पकासकिंसुय-सुयमुह-गुंजऽद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता जाव पज्जुवासित्ता, समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाणि आरोवेत्ता, समणाम
य समणीओ य खामेत्ता, तहारूवेहिं थेरेहिं कडाऽईहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं सणियं दुरूहित्ता, 9 मेघघणसन्निगास देवसनिवातं पुढवीसिलापट्टयं पडिलेहित्ता, दभसंथारयं संथरित्ता, दब्भसंथारोवगयस्स
संलेहणाझूसणाझूसियस्स भत्त पाणपडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए म ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव जलंते जेणेव समणे भगवं महावीरे ॥ जाव पज्जुवासइ।
४८. तदनन्तर किसी एक दिन रात्रि के पिछले पहर में धर्म-जागरणा करते हुए स्कन्दक अनगार के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय, चिन्तन यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ कि मैं इस (पूर्वोक्त) प्रकार के ॐ उदार यावत् महाप्रभावशाली तप द्वारा शुष्क, रूक्ष यावत् कृश हो गया हूँ। यावत् मेरा शारीरिक बल
क्षीण हो गया, मैं केवल आत्म-बल से चलता हूँ और खड़ा रहता हूँ। यहाँ तक कि बोलने के बाद..
बोलते समय और बोलने से पूर्व भी मुझे ग्लानि-खिन्नता होती है यावत् पूर्वोक्त गाड़ियों की तरह चलते : 5 और खड़े रहते हुए मेरी हड्डियों से खड़-खड़ आवाज होती है। अतः जब तक मुझमें उत्थान, कर्म, बल,
वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम है, जब तक मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर ॥
गन्धहस्ती की तरह विचरण कर रहे हैं, तब तक मेरे लिए श्रेयस्कर है कि इस रात्रि के व्यतीत हो जाने ॐ पर कल प्रातःकाल कोमल उत्पलकमलों को विकसित करने वाले, क्रमशः निर्मल प्रभायुक्त अशोक के
समान प्रकाशमान, टेसू के फूल, तोते की चोंच, गुंजा के अर्द्ध-भाग जैसे लाल, कमलवनों को विकसित ॥
करने वाले, सहस्ररश्मि, तथा तेज से जाज्वल्यमान दिनकर सूर्य के उदय होने पर मैं श्रमण भगवान ॐ महावीर को वन्दना-नमस्कार यावत् पर्युपासना करके श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा प्राप्त करके,
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द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक
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Second Shatak: First Lesson
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