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________________ गागागागागना ב כ ת ת ת ת תא תב תבש ב ב ב ב ב ב ת ת ת ת ת ת FFFFFhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh Bhagavan Mahavir and after paying homage and obeisance said, u 6 Bhante ! If you kindly permit me I wish to embrace and practice the fi Gunaratna-samvatsar penance. (Bhagavan--) “Beloved of gods ! Do as you please and avoid languor u when doing a good deed." विवेचन : भिक्षुप्रतिमा की आराधना विधि-निर्ग्रन्थ मुनियों के अभिग्रह (प्रतिज्ञा) विशेष को भिक्षुप्रतिमा कहते हैं। ये प्रतिमाएँ बारह होती हैं, जिनकी अवधि का उल्लेख मूल पाठ में किया है। (भिक्षु प्रतिमाओं का विस्तृत वर्णन । सचित्र अन्तकृद्दशासूत्र, पृष्ठ ३८४ पर देखें)। Elaboration-Bhikshu Pratima-Austerities to be performed by ascetics after taking some specific resolves are called Bhikshu Pratima. These are twelve in number and specific duration of each of them is y mentioned in the text. (For detailed description of Bhikshu Pratimas refer to Illustrated Antakriddasha Sutra, p. 384) ४४. तए णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे जाव नमंसित्ता । गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तं जहा-पढमं मासं चउत्थं चउत्थेणं अणिक्खित्तेणं । तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेण य। एवं । दोच्चं मासं छठें छट्टेणं अणिक्खित्तेणं० दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिं ! वीरासणेणं अवाउडेण य। एवं तच्चं मासं अट्ठमं अट्ठमेणं, चउत्थं मासं दसमं दसमेणं, पंचमं मासं बारसमं । बारसमेणं, छठें मासं चोद्दसमं चोद्दसमेणं सत्तमं मासं सोलसमं, सोलसमेणं अट्ठमं मासं अट्ठारसमं । अट्ठारसमेणं, नवमं मासं वीसइमं वीसइमेणं, दसमं मासं बावीसइमं बावीसइमेणं, एक्कारसमं मासं : चउब्बीसइमं चउब्बीसइमेणं, बारसमं मासं छब्बीसइमं छब्बीसइमेणं, तेरसमं मासं अट्ठावीसइमं । अट्ठावीसइमेणं, चोद्दसमं मासं तीसइमं तीसइमेणं, पनरसमं मासं बत्तीसइमं बत्तीसइमेणं, सोलसमं मासं चोत्तीसइमं चोत्तीसइमेणं, अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेणं। ४४. तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा प्राप्त होने पर स्कन्दक अनगार गुणरत्नसंवत्सर नामक तपश्चरण स्वीकार करके विचरण करने लगे। जैसे कि-(गुणरत्नसंवत्सर तप की विधि) पहले महीने में निरन्तर उपवास (चतुर्थभक्त तपःकर्म) करना, दिन में सूर्य के सम्मुख दृष्टि रखकर आतापनाभूमि में उत्कटक आसन से बैठकर सर्य की आतापना लेना और रात्रि में अपावत (निर्वस्त्र) होकर वीरासन से बैठना एवं शीत सहन करना। इसी तरह निरन्तर बेले-बेले पारणा करना। दिन में : उत्कुटुक आसन से बैठकर सूर्य के सम्मुख मुख रखकर आतापनाभूमि में सूर्य की आतापना लेना, रात्रि । में अपावृत होकर वीरासन से बैठकर शीत सहन करना। इसी प्रकार तीसरे मास में उपर्युक्त विधि के ५ अनुसार निरन्तर तेले-तेले पारणा करना। इसी विधि के अनुसार चौथे मास में निरन्तर चौले-चौले पारणा करना। पाँचवें मास में पचौले-पचौले (पाँच-पाँच उपवास से) पारणा करना। छठे मास में ב נ ת נ ת נ ת נ ת ת ת ת ת | द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक (263) Second Shatak: First Lesson ת ת ת ת Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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