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सोना, खाना, बोलना आदि क्रियाएँ करने लगे; तथा तदनुसार ही प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों के प्रति संयमपूर्वक बर्ताव करने लगे। इस विषय में वे जरा-सा भी प्रमाद नहीं करते थे।
36. Then Parivrajak Skandak of Katyayan clan duly accepted and embraced the aforesaid directions given by Shraman Bhagavan Mahavir and started moving, standing, sitting, reclining, eating, speaking and doing other activities accordingly. He also started behaving accordingly with all beings (praan), organisms (bhoot), souls (jiva) and entities (sattva) with great care and restraint. He was never negligent in this.
३७. तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते अणगारे जाए इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-जल्लसिंघाण परिट्ठावणियासमिए मणसमिए वयसमिए कायसमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभचारी चाई लज्जू धण्णे खंतिखमे जिइदिए सोहिए अणियाणे अप्पुस्सुए अबहिल्लेस्से सुसामण्णरए दंते इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विइरइ।
३७. अब वह कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक अनगार बन गए। वे अब ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमिति, उच्चार-प्रस्रवण-खेल-जल्ल-सिंघाण-परिष्ठापनिकासमिति, एवं मनःसमिति, वचनसमिति और कायसमिति, इन आठों समितियों का सम्यक् रूप से सावधानीपूर्वक पालन करने लगे। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति से गुप्त रहने लगे, अर्थात्-मन, वचन और काया को वश में रखने लगे। वे सबको वश में रखने वाले, इन्द्रियों को वश में रखने वाले, गुप्तब्रह्मचारी (ब्रह्मचर्य को सुरक्षित रखने वाले) त्यागी, लज्जावान् (संयमी = सरल), धन्य (पुण्यवान् या धर्मधनवान्), क्षमावान्, जितेन्द्रिय, व्रतों आदि के शोधक (शुद्धिपूर्वक आचरणकर्ता), निदान (नियाणा) न करने वाले, आकांक्षारहित, उतावलरहित, संयम से बाहर चित्त न रखने वाले, श्रेष्ठ साधुव्रतों में लीन, कषायों व इन्द्रियों का दमन करने वाले स्कन्दक मुनि इसी निर्ग्रन्थ प्रवचन को सम्मुख रखकर सब क्रियाएँ करने लगे।
37. Now, Parivrajak Skandak of Katyayan clan became a homeless ascetic. He now duly practiced properly and with care the eight regulations (samiti) including careful movement (irya samiti), careful speech (bhasha samiti), careful alms-seeking (eshana samiti), careful upkeep of ascetic-equipment including bowls (adan-bhand-matranikshepana samiti), careful disposal of excreta (uchchar-prasravan-kheljalla-singhan-parishthapanika samiti) [ucchara-prasravan = stool and urine; khel = phlegm coming out of mouth and nose; and jalla-singhan = dirt of the ear and nose], careful thought (manah samiti), careful speech (vachan samiti), careful action (kaya samiti). He also practiced the three restraints (guptis) including restraint of mind (manogupti), restraint of
द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक
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Second Shatak: First Lesson
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