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卐 अन्त वाला है, (२) क्षेत्र से लोक असंख्य कोडाकोडी योजन तक लम्बा-चौड़ा है, असंख्य कोडाकोडीज
योजन की परिधि वाला है, तथा वह अन्त-सहित है, (३) काल से ऐसा कोई काल नहीं था, जिसमें ॐ लोक नहीं था, ऐसा कोई काल नहीं है, जिसमें लोक नहीं है, ऐसा कोई काल नहीं होगा, जिसमें लोक न म होगा। लोक सदा था, सदा है और सदा रहेगा। लोक ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित ॥
और नित्य है। उसका अन्त नहीं है। (४) भाव से लोक अनन्त वर्णपर्यायरूप, गन्धपर्यायरूप, ऊ रसपर्यायरूप और स्पर्शपर्यायरूप है। इसी प्रकार अनन्त संस्थानपर्यायरूप, अनन्त गुरु-लघुपर्यायरूप
एवं अनन्त अगुरु-लघुपर्यायरूप है। उसका अन्त नहीं है। इस प्रकार हे स्कन्दक ! द्रव्यलोक अन्त-सहित है, क्षेत्रलोक अन्त-सहित है, काललोक अन्तरहित है और भावलोक भी अन्तरहित है। अतएव लोक अन्तसहित भी है और अन्त-रहित भी है।
24. [1] (Bhagavan--) Skandak ! Your mind is plagued with doubt (adhyavasaya), thought (chintan), curiosity (abhilasha), and inquisitiveness (sankalp) that 'Is the Lok with or without limit ?' In this regard I say—'O Skandak ! As I have said Lok is of four kinds (viewed from four standpoints)-(1) Dravyalok, (2) Kshetralok, (3) Kaal-lok and (4) Bhaavalok. (1) In context of substance (dravya) Lok is one and has a limit. (2) In context of area (kshetra) Lok is innumerable Kodakodi
(hundred trillion or 1014) Yojans in length and width, innumerable 4f Kodakodi Yojan in circumference and has a limit. (3) In context of time
(kaal) there was no such time when Lok did not exist, there is no such 4 time when Lok does not exist, and there will be no such time when Lok will not exist. Lok existed, exists and will exist always. Therefore it is dhruva (constant), niyat (fixed), shashvat (eternal), akshaya (imperishable), avyaya (non-expendable), avasthit (steady) and nitya (perpetual). It is without limit. (4) In context of state (bhaava) Lok has infinite alternatives of colour, odour, taste and touch. In the same way it has infinite alternatives of structure, grossness-subtleness (guru-laghu paryaya) and non-grossness-subtleness (aguru-laghu paryaya). It is
without a limit. Thus Skandak ! Dravyalok is with limit, Kshetralok is 41 with limit, Kaal-lok is without limit and Bhaavalok too is without limit. # Therefore Lok is with limit as well as without limit.
जीव : सान्त या अनन्त JIVA : WITH OR WITHOUT LIMIT __ [२] जे वि य ते खंदया ! जाव सअंते जीवे, अणंते जीवे ? तस्स वि य णं अयमट्टे-एवं खलु जाव : दव्वओ णं एगे जीवे सअंते। खेत्तओ णं जीवे असंखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे, अत्थि पुण से अंते। कालओ णं जीवे न कयावि न आसि जाव निच्चे, नत्थि पुणाइ से अंते। भावओ णं जीवे अणंता णाणपज्जवा अणंता दंसणपज्जवा अणंता चरित्तपज्जवा अणंता गरुयलहुयपज्जवा अणंता
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भगवतीसूत्र (१)
(248)
Bhagavati Sutra (1)
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