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________________ 卐 5 of Parivrajaks. After that carrying Tridand, Kundi, Kanchanika, 5 Karotika, Bhrishika, Kesarika, Trigadi, Ankush, Pavitri and Ganetrika 5 in his hands; getting equipped with Chhatra and Upanah and attiring himself in saffron coloured dress, he passed through the city of Shravasti and proceeded towards Kritangala city where Shraman Bhagavan Mahavir was stationed in Chhatrapalashak garden. 5 फ्र 5 卐 गौतम स्वामी द्वारा स्कन्दक का स्वागत WELCOME BY GAUTAM SWAMI १८. [१] 'गोयमा !' इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-दच्छिसि णं गोयमा ! पुव्वसंगतियं । [प्र. २ ] कं णं भंते ? [उ.] खंदयं नाम । [प्र. ३ ] से काहे वा ? किह वा ? केवच्चिरेण वा ? [उ. ] एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएण सावत्थी नामं नगरी होत्था । वण्णओ । तत्थ णं 5 सावत्थीए नगरीए गद्दभालस्स अंतेवासी खंदए णामं कच्चायणसगोत्ते परिव्वायए परिवसइ, तं चैव जाव जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए । से य अदूरागते बहुसंपत्ते अद्धाणपडिवत्रे अंतरापहे बट्टइ । 5 अज्जेव णं दच्छिसि गोयमा । 5 卐 फ्र 5 फ्र ***********************************E 65555 फ्र [प्र.४ ] 'भंते !' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं वंदइ नमसइ, २ एवं वयासी - पहू णं भंते ! खंदए कच्चायणसगोत्ते देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? [उ. ] हंता, पभू । १८. [ १ ] तब श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने अपने ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति अनगार को सम्बोधित करके कहा- 'गौतम ! (आज) तू अपने पूर्व के साथी (पूर्वजन्म के मित्र ) को देखेगा।' [प्र. २ ] 'भगवन् ! मैं (आज) किसको देखूँगा ? [उ. ] गौतम ! तू स्कन्दक ( नामक तापस) को देखेगा। [प्र. ३ ] 'भगवन् ! मैं उसे कब, किस तरह से और कितने समय बाद देखूँगा ?' [ उ. ] 'गौतम ! उस काल उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। उस श्रावस्ती नगरी में गर्दभाल नामक परिव्राजक का शिष्य कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक नामक परिव्राजक रहता है। इससे सम्बन्धित पूरा वृत्तान्त पहले के अनुसार जान लेना चाहिए। यावत्-उरा स्कन्दक परिव्राजक ने जहाँ मैं हूँ, वहाँ मेरे पास आने के लिए संकल्प कर लिया है। वह अपने स्थान से प्रस्थान करके मेरे पास आ रहा है। वह बहुत-सा मार्ग पार करके (जिस स्थान में हम हैं उससे) अत्यन्त निकट पहुँच गया है। अभी वह मार्ग में चल रहा है। वह बीच के मार्ग पर है। हे गौतम! तू आज ही उसे देखेगा।' भगवतीसूत्र (१) (242) Jain Education International Bhagavati Sutra (1) For Private & Personal Use Only ५ फ्र *********தமிமிமிமிமிதமிழ***தமி***********மிதில் 5 www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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