________________
卐
5 वायुकाय के श्वासोच्छ्रवास RESPIRATION IN AIR-BODIED BEINGS
फ्र
சுசுசுசுசு*********
फ्र
F
६. [ प्र.] वाउयाए णं भंते ! वाउयाए चेव आणमंति वा पाणमंति वा ऊ ससंति वा नीससंति वा ?
[उ. ] हंता, गोयमा ! वाउयाए णं वाउयाए जाव नीससंति वा ।
६. [ प्र.] भगवन् ! क्या वायुकाय, वायुकायों को ही बाह्य और आभ्यन्तर उच्छ्वास और निःश्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ?
[उ.] हाँ, गौतम ! वायुकाय, वायुकायों को ही बाह्य और आभ्यन्तर उच्छ्वास और निःश्वास के 5 · रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है।
卐
6. [Q.] Bhante ! Do air-bodied beings (vayu - kaya) breathe-in and 卐 breathe-out as well as inhale and exhale only air-bodied beings?
卐
[Ans.] Yes, Gautam ! Air-bodied beings breathe-in and breathe-out as 卐 well as inhale and exhale only air-bodied beings.
卐
७. [ प्र. १ ] वाउयाए णं भंते ! वाउयाए चेव अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो 5 भुज्जो पच्चायाति ?
卐
[उ. ] हंता, गोयमा ! जाव पच्चायाति ।
卐
७. [ प्र. १ ] भगवन् ! क्या वायुकाय, वायुकाय में ही अनेक लाखों बार मरकर पुनः पुनः फ्र ( वायुकाय में ही ) उत्पन्न होता है ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! वायुकाय, वायुकाय में ही अनेक लाखों बार मरकर पुनः पुनः वहीं उत्पन्न होता है। फ्र 7. [Q. 1] Bhante ! Do air-bodied beings die and are reborn as air- 卐 bodied beings again and again several hundreds of thousand times?
[प्र. २] से भंते कि पुट्ठे उद्दाति ? अपुट्ठे उद्दाति ?
[ उ. ] गोयमा ! पुट्ठे उद्दाइ, नो अपुट्ठे उद्दाइ ।
[Ans.] Yes, Gautam ! Air-bodied beings die and are reborn as air- 5 bodied beings again and again several hundreds of thousand times.
[प्र. २ ] भगवन् ! क्या वायुकाय स्व-जाति के अथवा पर-जाति के जीवों के साथ स्पृष्ट होकर मरण पाता है अथवा बिना स्पृष्ट हुए ही मरण पाता है ?
फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफा
卐
[Ans.] Gautam ! The air-bodied beings die by touch (of beings of the same or other class) and not without a touch.
[उ.] गौतम ! वायुकाय, स्पृष्ट होकर ( स्व - काय या पर- काय शस्त्र से) मरण पाता है, किन्तु स्पृष्ट हुए बिना मरण नहीं पाता ।
[Q. 2] Bhante ! Do the air-bodied beings die by touch (of beings of the f same or other class) or without touch?
द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक
(231)
Jain Education International
Second Shatak: First Lesson
For Private & Personal Use Only
******************************SS
卐
45
www.jainelibrary.org