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नरकादि गतियों में जीवों का उत्पाद-विरह काल DURATION OF OMISSION OF BIRTH
३. [प्र. ] निरयगती णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?
[उ. ] गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। एवं वक्कंतीपदं भाणियव्वं निरवसेसं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरति।
॥पढमे सए : दसमो उद्देसो समत्तो ॥
॥ पढमं सतं समत्तं ॥ ३. [प्र. ] भगवन् ! नरकगति कितने समय तक उपपात से विरहित रहती है ? __ [उ. ] गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक। इस सम्बन्ध में यहाँ (प्रज्ञापनासूत्र का) 'व्युत्क्रान्तिपद' कहना चाहिए।
'भगवन् ! यह ऐसा ही है, यह ऐसा ही है', इस प्रकार कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं।
3. [Q.] Bhante ! For what period the infernal realm (narak gati) has omission of instantaneous birth (upapat)?
(Ans.] Gautam ! For a minimum of one Samaya and a maximum of twelve Muhurts (a unit equivalent to 48 minutes). In this regard the 'Vyutkrantipad' (from Prajnapana Sutra) should be stated.
"Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : नरकादि में उत्पाद-विरहकाल-प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार विभिन्न गतियों में जीवों की उत्पत्ति का विरहकाल संक्षेप में इस प्रकार है-पहली नरक में २४ मुहूर्त का, दूसरी में ७ अहोरात्र का, तीसरी में १५ अहोरात्र का, चौथी में १ मास का, पाँचवीं में २ मास का, छठी में ४ मास का, सातवीं में ६ मास का विरहकाल होता है। इसी प्रकार तिर्यंचपंचेन्द्रिय, मनुष्य एवं देवगति में जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट १२ मुहूर्त का उत्पाद-विरहकाल है। पंचस्थावरों में कभी विरह नहीं होता, विकलेन्द्रिय में और असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच में अन्तर्मुहूर्त का तथा संज्ञी-तिर्यंच एवं संज्ञी मनुष्य में १२ मुहूर्त का विरह होता है। सिद्ध अवस्था में उत्कृष्ट ६ मास का विरह होता है। इसी प्रकार उद्वर्तना के विरहकाल के विषय में भी जानना चाहिए। (वृत्ति, पत्रांक १०७-१०८)
॥ प्रथम शतक : दशम उद्देशक समाप्त ॥
॥प्रथम शतक समाप्त ॥ Elaboration-Duration of omission of birth-According to the sixth chapter, Vyutkrantipad, of Prinapana Sutra the brief description of the period of omission of birth in various genuses (gati) is as follows-In the
प्रथम शतक : दशम उद्देशक
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First Shatak: Tenth Lesson
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