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souls would be attributed with the ability to speak and not the actual speakers. (9) To call the act preceding and one following the action as misery instead of the action itself is against the evident reality because an action causes pleasure or pain only while it is being performed and not before or after. This way the views of followers of other schools have been negated and the view of our own school (Jain view) as propagated by Bhagavan has been established. (Vritti, leaf 102-104)
Bataferent 3th French for un AIRYAPATHIKI AND SAMPARAYIKI ACTIVITY
२. [प्र. ] अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव-एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, तं जहा-इरियावहियं चं संपराइयं च। जं समयं इरियावहियं पकरेइ तं समयं संपराइयं पकरेइ., 'जं समयं संपराइयं पकरेइ तं समयं इरियावहियं पकरेइ; इरियावहियाए पकरणयाए संपराइयं पकरेइ, संपराइयए पकरणायाए इरियावहियं पकरेइ; एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, तं जहा-इरियावहियं च संपराइयं च।' से कहमेयं भंते एवं ?
[उ. ] गोयमा ! “जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव संपराइयं च, जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसुः अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि ४-एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेइ।" परउत्थियवत्तव् नेयव्वं । ससमयवत्तव्बयाए नेयब्वं। जाव इरियावहियं वा संपराइयं वा।
२. [प्र. ] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं-यावत् प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है। वह है-ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी। जिस समय (जीव) ऐर्यापथिकी क्रिया करता है, उस समय साम्परायिकी क्रिया करता है और जिस समय साम्परायिकी क्रिया करता है, उस समय ऐर्यापथिकी क्रिया करता है। ऐर्यापथिकी क्रिया करने से साम्परायिकी क्रिया करता है और साम्परायिकी क्रिया करने से ऐर्यापथिकी क्रिया करता है; इत्यादि। इस प्रकार एक जीव, एक समय में दो क्रियाएँ करता है-एक ऐर्यापथिकी और दूसरी साम्परायिकी। हे भगवन् ! क्या यह इसी प्रकार है? _[उ. ] गौतम ! जो अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं, वह मिथ्या है। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ कि एक जीव एक समय में एक क्रिया करता है। यहाँ परतीर्थिकों का तथा स्वसिद्धान्त का वक्तव्य कहना चाहिए। यावत् ऐर्यापथिकी अथवा साम्परायिकी क्रिया करता है।
2. [Q.] Bhante ! Followers of other schools say, ... and so on up to... propagate that—"That a living being (soul) performs two activities (kriya) at one given moment (Samaya). They are-airyapathiki (careful movement of an accomplished ascetic or an omniscient with non-vitiating karmas) and samparayiki (activity inspired by association and passions and leading to karmic bondage). When he performs airyapathiki kriya he also performs samparayiki kriya and when he performs samparayiki
प्रथम शतक : दशम उद्देशक
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First Shatak : Tenth Lesson
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