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२२. [ १ ] (स्थविर भगवन्तों का उत्तर सुनकर ) वह कालास्यवेषिपुत्र अनगार बोध को प्राप्त हुए और उन्होंने स्थविर भगवन्तों की वन्दना की, नमस्कार किया, वन्दना - नमस्कार करके इस प्रकार कहा'हे भगवन् ! इन (पूर्वोक्त) पदों को न जानने से पहले सुने हुए न होने से, बोध न होने से अभिगम (ज्ञान) न होने से, दृष्ट न होने से, विचारित (सोचे हुए) न होने से, सुने हुए न होने से, विशेष रूप से न जानने से, कहे हुए न होने से, अनिर्णीत होने से, उद्धृत न होने से और ये पद अवधारण किये हुए न होने से, इस अर्थ में श्रद्धा नहीं की थी, प्रतीति नहीं की थी, रुचि नहीं की थी; किन्तु भगवन् ! अब इन (पदों) को जान लेने से, सुन लेने से, बोध होने से, अभिगमन होने से, दृष्ट होने से, चिन्तित ( चिन्तन किये हुए) होने से, श्रुत (सुने हुए) होने से, विशेष जान लेने से, (आपके द्वारा) कथित होने से, निर्णीत होने से, उद्धृत होने से और इन पदों का अवधारण करने से इस अर्थ (कथन) पर मैं श्रद्धा करता हूँ, प्रतीति करता हूँ; रुचि करता हूँ, हे भगवन् ! आप जो यह कहते हैं, वह यथार्थ है, वह इसी प्रकार है ।'
22. [1] (On hearing the reply from Sthavirs) Kaalasyaveshiputra got enlightened and paid homage and obeisance to them. After doing that he said — 'Bhante ! As I was ignorant of these statements (aforesaid), as I never heard them, never knew them, never had knowledge of them, never perceived them, never thought about them, never acquired them, never thoroughly understood them, was never told about them, never determined them, never was cited them and never having accepted them, I did not have reverence, faith and interest in them. But now, Bhante ! Becoming aware of these statements ( aforesaid ), having heard them, having known them, having acquired knowledge of them, having perceived them, having thought about them, having acquired them, having thoroughly understood them, having been told about them ( by you), having determined them, being cited them and having accepted them, I now have reverence, faith and interest in them. Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is true. '
[ २ ] तए णं ते थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अणगारं एवं वयासी - सद्दहाहि अज्जो ! पत्तियाहि अज्जो ! रोएहि अज्जो ! से जहेयं अम्हे बदामो ।
[ २ ] तब उन स्थविर भगवन्तों ने कालास्यवेषिपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा - 'हे आर्य ! हम जैसा कहते हैं उस पर वैसी ही श्रद्धा करो, आर्य ! उस पर प्रतीति करो, आर्य ! उसमें रुचि रखो।'
[2] Then those Sthavir Bhagavants said to KaalasyaveshiputraO Arya ! Have reverence in them. O Arya ! Have faith in them. O Arya ! Have interest in them. They are as we have said.
२३. [ १ ] तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे थेरे भगवंते वंदइ नमंसइ, २ एवं वदासी - इच्छामि भंते! तुब्भं अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए । अहं देवाप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।
प्रथम शतक : नवम उद्देशक
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First Shatah: Ninth Lesson
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