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________________ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ) )) ))) )) ) ))) ) ) ) )) )) __ आयुष्यबन्ध के सम्बन्ध में अन्य तीर्थिक OTHER VIEWS ABOUT LIFE-SPAN BONDAGE २०. [प्र. ] अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति एवं भासेंति एवं पण्णवेति एवं परूवेति-"एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पगरेति, तं जहा-इहभवियाउयं च, परभवियाउयं च। जं समयं इहभवियाउयं पकरेति समयं परभवियाउयं पकरेति, जं समयं परभवियाउयं पकरेति तं समयं इहभवियाउयं पकरेइ; इहभवियाउयस्स पकरणयाए परभवियाउयं पकरेइ, परभवियाउयस्स पगरणताए इहभवियाउयं पकरेति। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पकरेति, तं.-इहभवियाउयं च, परभवियाउयं च।" से कहमेतं भंते ! एवं ? ___ [उ. ] गोयमा ! जं णं ते अण्णउत्थिया एवमाइक्खंति जाव परभवियाउयं च। जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि-एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पकरेति, तं जहा-इहभवियाउयं वा, परभवियाउयं वा; जं समयं इहभवियाउयं पकरेति णो तं समयं । परभवियाउयं पकरेति, जं समयं परभवियाउयं पकरेइ णो तं समयं इहभवियाउयं पकरेइ; इहभवियाउयस्स पकरणताए णो परभवियाउयं पकरेति, परभवियाउयस्स पकरणताए णो इहभवियाउयं पकरेति। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पकरेति, तं.-इहभवियाउयं वा, परभवियाउयं वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे जाव विहरति। २०. [प्र. ] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, इस प्रकार विशेष रूप से कहते हैं, इसके प्रकार बताते हैं और इस प्रकार की प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो आयुष्य बाँधता है, . वह इस प्रकार है-इस भव का आयुष्य और परभव का आयुष्य। जिस समय इस भव का आयुष्य बाँधता है, उस समय परभव का आयुष्य बाँधता है और जिस समय परभव का आयुष्य बाँधता है, उस समय इस भव का आयुष्य बाँधता है। इस भव का आयुष्य बाँधने से परभव का आयुष्य बाँधता है और परभव का आयुष्य बाँधने से इस भव का आयुष्य बाँधता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो आयुष्य बाँधता है-इस भव का आयुष्य और परभव का आयुष्य। भगवन् ! क्या यह इसी प्रकार है ? [उ. ] गौतम ! अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् इस भव का आयुष्य और परभव का आयुष्य (बाँधता है); उन्होंने जो ऐसा कहा है, वह मिथ्या कहा है। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि एक जीव एक समय में एक आयुष्य बाँधता है और वह या तो इस भव का आयुष्य बाँधता है अथवा परभव का आयुष्य बाँधता है। जिस समय इस भव का आयुष्य बाँधता है, उस समय परभव का आयष्य नहीं बाँधता और जिस समय परभव का आयुष्य बाँधता है, उस समय के इस भव का आयुष्य नहीं बाँधता। तथा इस भव का आयुष्य बाँधने से परभव का आयुष्य और परभव का आयुष्य बाँधने से इस भव का आयुष्य नहीं बाँधता। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक आयुष्य बाँधता है-इस भव का आयुष्य अथवा परभव का आयुष्य। ___'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ; ऐसा कहकर भगवान गौतम स्वामी + यावत् विचरते हैं। ))) )) )) )) ) )) )) )) )) 卐) | भगवतीसूत्र (१) (202) Bhagavati Sutra (1) 日历步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步$$$$$$ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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