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ग्रन्थगुरुत्व न हो, इसी उद्देश्य से श्री देवर्द्धिगणी आदि पश्चाद्वर्ती आगम लेखकों ने इस निर्देश पद्धति का ॐ अवलम्बन लिया था। इसी आधार पर यह आगम पश्चाद्ग्रथित है, ऐसा निर्णय नहीं करना चाहिए। ॥
वस्तुतः व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र गणधर रचित ही है, इसकी मूल रचना प्राचीन ही है। 卐 प्रस्तुत संस्करण
भगवती सूत्र पर अब तक अनेक विद्वानों के अनुवाद, विवेचन आदि प्रकाशित हो चुके हैं। हमने अपने अनुवाद में मुख्य रूप में इन संस्करणों का आधार लिया है-(१) भगवती सूत्र-सात भाग : + पं. घेवरचन्द जी बाँठिया द्वारा सम्पादित, (२) व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र-चार भाग : मेरे (अमर मुनि) द्वारा सम्पादित विवेचन सहित, तथा (३) भगवई-दो भाग : आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा सम्पादित।।
यद्यपि इस सूत्र के विवेचन में जितना विस्तार और तुलनात्मक अध्ययन अपेक्षित है, वैसा संस्करण अब तक उपलब्ध नहीं है, फिर भी आवश्यक और उपयोगी विवेचन को हमने सरल रूप में प्रस्तुत कर ॐ दिया है। इसकी विशेषता है हिन्दी के साथ अंग्रेजी भाषा में अनुवाद। अंग्रेजी अनुवाद के कारण म ॐ अन्तर्राष्ट्रीय विद्वद् जगत् में भी इसकी उपयोगिता बढ़ गई है। यह तो निश्चित है कि अंग्रेजी भाषा में 5
जैन आगमों के पारिभाषिक शब्द उपलब्ध नहीं हैं। अतः उनका शब्दशः अनुवाद सम्भव ही नहीं है। ॐ हमने मूल शब्द को सुरक्षित रखते हुए उस शब्द की परिभाषा व व्याख्या अंग्रेजी में वहीं पर दे दी है। ऊ + जिस कारण पाठक मूल शब्द के आशय को अच्छी प्रकार ग्रहण कर सकेगा।
यों तो इस सूत्र में विषय को स्पष्ट करने के लिए बहुत अधिक चित्रों की अपेक्षा थी, परन्तु अपनी + समय सीमा, पृष्ठ संख्या व अन्य बातों को ध्यान में रखते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण विषयों के रंगीन चित्र प्रस्तुत किये हैं, जिस कारण गम्भीर विषय में रोचकता बढ़ गई है।
महत्त्वपूर्ण शब्दों का अंग्रेजी पारिभाषिक शब्दकोष भी परिशिष्ट में देने का हमारा प्रयत्न है।
श्रुत-सेवा के लिए मुझे सतत प्रेरणा एवं मार्गदर्शन करने वाले पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक 卐 भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. का पावन स्मरण किये बिना मेरा यह प्राक्कथन अपूर्ण ही रहेगा। मैंने जो
कुछ प्राप्त किया है और जो वर्तमान में कर रहा हूँ, वह सब उन्हीं गुरुदेव की कृपा तथा आशीर्वाद का ही शुभ फल है।
सदा की भाँति सचित्र आगम प्रकाशन की पावन श्रुत-सेवा में श्रीचन्द जी सुराना, श्री सुरेन्द्र जी बोथरा, सुश्रावक श्री राजकुमार जी जैन जैसे विद्वान् सम्पादक बन्धुओं का तथा प्रकाशन सहयोगी + गुरुभक्तों का जो प्रेम व सौहार्दपूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ है, उसके प्रति बहुत-बहुत साधुवाद ! जैन स्थानक,
-प्रवर्तक अमर मुनि ॥ लुधियाना।
(उत्तर भारतीय प्रवर्तक)
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