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________________ &F听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 9555555555555555555555555555555555555 के रूप में प्ररूपित करते हैं तथा उस अद्भुत युग का चित्रण भी, जब धर्म और दर्शन का सृजनात्मक दौर चल ॐ रहा था। ऐसा प्रतीत होता है कि महावीर उस युग के अन्य किसी भी दार्शनिक की तुलना में, यहाँ तक है कि बुद्ध की तुलना में भी अपने समय के आध्यात्मिक उत्साह एवं उत्कटता से अधिक प्रेरित थे। ई. फ्राउवालनार ने अपने ग्रन्थ 'हिस्ट्री ऑफ इण्डियन फिलोसोफी' में बुद्ध के विषय में सम्भवतः जिन (महावीर) से उनकी तुलना करते समय, यह अभिमत व्यक्त किया है कि उनका (बुद्ध का) दार्शनिक विचारों के क्षेत्र के विकास में अपेक्षाकृत बहुत थोड़ा योगदान मिला। यद्यपि यह फैसला बहुत अधिक कड़ा है, फिर भी यह एक मजबूत आधारभित्ति पर आधारित है कि बुद्ध अपने समकालीन दार्शनिकों के सामने आने वाले प्रश्नों के उत्तर देने से साफ इन्कार कर देते थे। चूँकि महावीर ने इन सभी प्रश्नों के बहुत ही व्यवस्थित रूप से उत्तर दिये; इसलिए उन्हें जो प्राचीन भारत के ज्ञानी चिन्तकों में सर्वाधिक ज्ञानी कहा गया है, वह बिल्कुल उचित ही है।" ____ पाश्चात्य जगत् के प्रसिद्ध विद्यानुरागी शोधकर्ताओं के ये उद्गार भगवती सूत्र की ज्ञान-विज्ञान सम्बन्धी गम्भीरता और उत्कृष्टता का वास्तविक मंथन है। प्रस्तुत आगम में गतिविज्ञान, भावितात्मा द्वारा नाना रूपों का निर्माण, भोजन और नाना रूपों के निर्माण का सम्बन्ध, चतुर्दशपूर्वी द्वारा एक वस्तु के हजारों प्रतिरूपों का निर्माण, भावितात्मा द्वारा आकाशगमन, पृथ्वी आदि स्थावर जीवों का श्वास-उच्छ्वास, गतिप्रवाद अध्ययन की प्रज्ञापना, कृष्णराजि, तमस्काय, परमाणु की गति, दूरसंचार आदि अनेक महत्त्वपूर्ण प्रकरण हैं। उनका वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन अपेक्षित है। विलक्षण विवेचन-शैली भगवती सूत्र की रचना प्रश्नोत्तरों के रूप में हुई है। प्रश्नकर्ताओं में मुख्य हैं-श्रमण भगवान महावीर के प्रधान शिष्य गणधर इन्द्रभूति गौतम। इनके अतिरिक्त माकन्दिपुत्र, रोह अनगार, गणधर अग्निभूति, वायुभूति आदि। कभी-कभी स्कन्दक आदि कई परिव्राजक, तापस एवं पार्थापत्य अनगार आदि भी प्रश्नकर्ता के रूप में उपस्थित होते हैं। कभी अन्य धर्मतीर्थावलम्बी भी वाद-विवाद करने या के शंका के समाधानार्थ आ पहुँचते हैं। कभी तत्कालीन श्रमणोपासक अथवा जयन्ती आदि जैसी श्रमणोपासिकाएँ भी प्रश्न पूछकर समाधान पाती हैं। प्रश्नोत्तरों के रूप में ग्रथित होने के कारण इसमें कई बार पिष्ट-पेषण भी हुआ है, जो किसी भी सिद्धान्तप्ररूपक के लिए अपरिहार्य है, क्योंकि किसी भी है प्रश्न को समझाने के लिए उसकी पृष्ठभूमि बतानी भी आवश्यक हो जाती है। ____एक बात और है-भगवती सूत्र में विषयों का विवेचन प्रज्ञापना, स्थानांग आदि शास्त्रों की तरह सर्वथा विषयबद्ध, क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित पद्धति से नहीं है और न गौतम गणधर के प्रश्नों का संकलन की ही किसी पूर्व निश्चित क्रम से है। इसका कारण भगवती सूत्र के अध्येता को इस शास्त्र में अवगाहन करने से स्वतः ज्ञात हो जायेगा कि गौतम गणधर के मन में जब किसी विषय के सम्बन्ध में स्वतः या 卐 किसी अन्यतीर्थिक अथवा स्वतीर्थिक व्यक्ति का या उससे सम्बन्धित वक्तव्य सुनकर जिज्ञासा उत्पन्न हुई 1. E. Frauwallner, Geschictite der Indischen Philosophie (Salzburg 1953), vol. I, p. 247; cf, also p. 253. B9555555554))))))))5555555555555555555555555 (14) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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