________________
55555555
८. [प्र.१ ] भगवन् ! क्या बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं अथवा प्राप्त नहीं होते ? [ उ. ] गौतम ! बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं और बहुत से जीव प्राप्त नहीं भी होते । [प्र. २ ] भगवन् ! क्या नैरयिक विग्रहगति को प्राप्त होते हैं या नहीं प्राप्त होते ?
[उ.] गौतम ! (१) (कभी) वे सभी विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते, अथवा (२) (कभी) बहुत से विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते और कोई-कोई विग्रहगति को प्राप्त होता, अथवा (३) (कभी) बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते और बहुत से (जीव) विग्रहगति को प्राप्त होते हैं। यों जीव सामान्य और एकेन्द्रिय को छोड़कर सर्वत्र इसी प्रकार तीन-तीन भंग कहने चाहिए ।
8. [Q. 1] Bhante ! Do many souls undergo vigraha gati ( reincarnative oblique movement ) or do they not ?
[Ans.] Gautam ! Many souls undergo vigraha gati ( reincarnative oblique movement) and many do not.
[Q. 2] Bhante ! Do infernal beings undergo vigraha gati ( reincarnative oblique movement ) or do they not ?
[Ans.] Gautam ! ( 1 ) ( sometimes) all of them do not undergo vigraha gati (reincarnative movement), or ( 2 ) ( sometimes ) many of them do not undergo vigraha gati (reincarnative movement) and a few of them does, or (3) (sometimes) many of them do not undergo vigraha gati (reincarnative movement) and many of them do. In the same way these three alternatives should be repeated for all beings except for souls in general and one-sensed beings.
विवेचन : विग्रहगति - अविग्रहगति की व्याख्या - सामान्यतया एक गति का आयुष्य समाप्त होने पर जीव शरीर छोड़कर दूसरी गति में जाते समय मार्ग में गमन करता है, तब उसकी गति दो प्रकार की हो सकती हैविग्रहगति और अविग्रहगति । कोई-कोई जीव जब एक, दो या तीन बार मुड़कर उत्पत्ति स्थान पर पहुँचता है, तब उसकी वह गति विग्रहगति कहलाती है और जब कोई जीव मार्ग में बिना मुड़े ( मोड़ खाये) सीधा अपने उत्पत्ति स्थान पर पहुँच जाता है तब उसकी उस गति को अविग्रहगति कहते हैं । यहाँ अविग्रहगति का अर्थ ऋजु - सरल गति नहीं है, किन्तु 'विग्रहगति का अभाव' अर्थ ही संगत माना गया है। अर्थात् दूसरी गति में जाते समय जो जीव मार्ग में गति करता है, उस अवस्था को प्राप्त जीव विग्रहगति समापन है और जो जीव किसी भी गति में स्थित है, उस अवस्था को प्राप्त जीव अविग्रहगति - समापन्न है ।
बहुत जीवों की अपेक्षा से - जीव अनन्त हैं। इसलिए प्रतिसमय बहुत से जीव विग्रहगति समापन भी होते हैं, और विग्रहगति के अभाव वाले भी होते हैं । (वृत्ति, पत्रांक ८५-८६ )
Elaboration-Vigraha gati and avigraha gati-Generally speaking at the end of the life-span in one genus a soul leaves the body and moves to another genus. This movement can be of two types vigraha gati (oblique
प्रथम शतक : सप्तम उद्देशक
(165)
First Shatak: Seventh Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
५
www.jainelibrary.org