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卐 [उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; क्योंकि वह (सूक्ष्म स्नेहकाय) शीघ्र ही विध्वस्त हो जाता है। 3 हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।' + [Q. 3] Bhante ! Does that superfine mist exist for a long time in
conder.sed form like gross water particles ? 卐 [Ans.] Gautam ! It is not so because that (superfine mist) gets destroyed soon.
“Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." म विवेचन : स्नेहकाय जल का एक प्रकार है। आचार्य मलयगिरि ने बृहत्कल्पभाष्य की वृत्ति में स्नेह का अर्थ
अवश्याय, कोहरा आदि किया है। प्रस्तुत सूत्र में 'स्नेह' के साथ 'सूक्ष्म' विशेषण का प्रयोग किया गया है। इससे ॐ ज्ञात होता है कि ओस से भी सूक्ष्म जल-द्रव्य के लिए 'सूक्ष्म-स्नेह' शब्द का प्रयोग किया गया है। बृहत्कल्पभाष्य के में स्निग्ध और रूक्ष काल के अनुसार उसके गिरने के समय का निर्देश इस प्रकार है-शिशिरकाल में प्रथम और
अन्तिम प्रहर में वह अधिक मात्रा में गिरता है। ग्रीष्मकाल में प्रथम और अन्तिम प्रहर के आधे-आधे भाग में ॐ वह अधिक गिरता है। शेष समय में वह अल्प गिरता है! अभयदेवसूरि का भी यही अभिमत है।
सूक्ष्म स्नेहकाय की तुलना आर्द्रता (humidity) से की जा सकती है। सूक्ष्म स्नेहकाय ऊँचे, नीचे और तिरछे तीनों लोकों में गिरता है। इस आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि वह तमस्काय से गिरता है 卐 और पूरे वातावरण में व्याप्त होता है। (भगवई : भाष्य, पृ. १४१)
॥प्रथम शतक : छठा उद्देशक समाप्त ॥ 4 Elaboration-Snehakaya is a form of water. In the Vritti of
Brihatkalpabhashya Malayagiri has interpreted sneha as fog, mist etc. In this aphorism an adjective, sukshma (minute) has been used with
sneha. This indicates that the term sukshma-sneha has been used for 4 super fine mist. In Brihatkalpabhashya details about time of falling of
such fine mist has been mentioned according to arid and wet periods-In winters it is heavy during first and last quarters of the day. In summers
it is heavy during half of the first and last quarters of the day. During 15 the remaining period of the day it is light. Abhayadev Suri also ki subscribes to the same view.
Sukshma sneha kaya can be compared with humidity also. It falls in upper, lower as well as transverse worlds. Thus it can be infered that at falls from Tamaskaya and pervades the atmosphere. (Bhagvai : Bhashya, p. 141)
• END OF THE SIXTH LESSON OF THE FIRST SHATAK
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भगवतीसूत्र (१)
(158)
Bhagavati Sutra (1)
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