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प्रथम शतक: छठा उद्देशक FIRST SHATAK (Chapter One) : SIXTH LESSON
alldor YAVANT (AS FAR AS)
सूर्य के उदयास्त सम्बन्धी प्रश्न SUNRISE AND SUNSET
१. [प्र. ] जावतियातो णं भंते ! ओवासंतरातो उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्षुफासं हव्वमागच्छति ? _[उ.] हंता, गोयमा ! जावतियाओ णं ओवासंतराओ उगयंते सूरिए चक्खुफासं हव्यमागच्छति अत्थमंते वि सूरिए जाव हब्बमागच्छति।
१. [प्र. ] भगवन् ! जितने-जितने अवकाशान्तर से अर्थात्-जितनी दूरी से उदय होता हुआ सूर्य आँखों से शीघ्र देखा जाता है, उतनी ही दूरी से क्या अस्त होता हुआ सूर्य भी दिखाई देता है ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! जितनी दूर से उदय होता हुआ सूर्य आँखों से दीखता है, उतनी ही दूर से अस्त होता सूर्य भी आँखों से दिखाई देता है।
___ 1. [Q.] Bhante ! Is the setting sun visible to naked eyes at a distance (avakashantar) from which the rising sun is visible to naked eyes ? __[Ans.] Yes, Gautam ! The setting sun also is visible to naked eyes ata distance from which the rising sun is visible to naked eyes ?
२. [प्र.] जावतियं णं भंते ! खेत्तं उदयंते सूरिए आतवेणं सब्बतो समंता ओभासेति उज्जोएति तवेति पभासेति अत्थमंते वि णं सूरिए तावतियं चेव खेत्तं आतवेणं सवतो समंता ओभासेति उज्जोएति तवेति पभासेति ?
[उ. ] हंता, गोयमा ! जावतियं णं खेत्तं जाव पभासेति।
२. [प्र.] भगवन् ! उदय होता हुआ सूर्य अपने ताप द्वारा जितने क्षेत्र को सब प्रकार से, चारों ओर से सभी दिशाओं-विदिशाओं को अवभासित (सामान्य रूप में प्रकाशित) करता है, उद्योतित (विशेष रूप में प्रकाश) करता है, तपाता (शीत दूर करता) है, प्रभासित (तेज प्रकाश व तीव्र ताप करता है) क्या उतने ही क्षेत्र को अस्त होता हुआ सूर्य भी अपने ताप द्वारा सभी दिशाओं-विदिशाओं को प्रकाशित करता है, उद्योतित करता है, तपाता है और बहुत तपाता है ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! उदय होता हुआ सूर्य जितने क्षेत्र को प्रकाशित करता है, यावत् अत्यन्त तपाता है, उतने ही क्षेत्र को अस्त होता हुआ सूर्य भी प्रकाशित करता है, यावत् अत्यन्त तपाता है।
2. (Q.) Bhante ! The rising sun lights up (avabhasit), illuminates (udyotit), warms up (taapit) and blazes (prabhasit) certain area in all
प्रथम शतक : छठा उद्देशक
(141)
First Shatak : Sixth Lesson
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