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[Ans.] Gautam ! Their bodies are devoid of body structure. In other words they do not have any of the six Samhanan (body-constitution). Their bodies have no bones, no veins and no sinews. Anisht (not desirable), akaant (not beautiful), apriya (not lovable), ashubha (ignoble), amanojna (not attractive), amanohar (not adorable or whose mere thought is repulsive) matter particles coalesce to constitute the bodies of infernal beings.
१५. [प्र. ] इमीसे णं भंते ! जाव छण्हं संघयणाणं असंघयणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता० ? [उ. ] सत्तावीसं भंगा।
१५. [प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के प्रत्येक नारकावास में रहने वाले और छह संहननों में से जिनके एक भी संहनन नहीं है, वे नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, यावत् लोभोपयुक्त हैं ?
[उ. ] गौतम ! इनके पूर्वोक्त सत्ताईस भंग कहने चाहिए।
15. (Q.) Bhante ! Do the infernal beings without any of the six Samhanan (body-constitution) living in each one of the infernal abodes in this Ratnaprabha prithvi have inclination of anger (krodhopayukta), ... and so on up to... inclination of greed (lobhopayukta)? ___ [Ans.] Gautam ! Twenty seven aforesaid alternatives should be stated for them. पाँचवाँ : संस्थान द्वार FIFTH : SAMSTHAN
१६. [प्र. ] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभा जाव सरीरया किं संटिता पण्णत्ता ?
[उ. ] गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते हुंडसंठिया पण्णत्ता। तत्थ णं उत्तरवेउब्विया ते वि हुंडसंठिया पण्णत्ता।
१७. [प्र. ] इमीसे णं जाव हुंडसंठाणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता० ? [उ. ] सत्तावीसं भंगा।
१६. [प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नारकावास में रहने वाले नैरयिकों के शरीर किस संस्थान वाले हैं ?
[उ. ] गौतम ! उन नारकों का शरीर दो प्रकार का है, यथा-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। उनमें जो भवधारणीय शरीर वाले हैं, वे हुण्डक संस्थान वाले होते हैं, और जो शरीर उत्तरवैक्रियरूप हैं, वे भी हुण्डकसंस्थान वाले हैं।
१७. [प्र. ] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में यावत् हुण्डकसंस्थान में वर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त इत्यादि हैं ?
[उ. ] गौतम ! इनके भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए।
प्रथम शतक : पंचम उद्देशक
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First Shatak: Fifth Lesson 五步5555555555555555555555555555555555
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