________________
[प्र. ] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि पूर्वोक्त छद्मस्थ मनुष्य समस्त दुःखों का अन्तकर नहीं हुआ?
[उ. ] गौतम ! जो भी कोई मनुष्य कर्मों का अन्त करने वाले, चरमशरीरी हुए हैं, अथवा समस्त दुःखों का जिन्होंने अन्त किया है, जो अन्त करते हैं या करेंगे, वे सब उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधारी (केवलज्ञानी-केवलदर्शनी), अर्हन्त, जिन और केवली होकर तत्पश्चात् सिद्ध हुए हैं, बुद्ध हुए हैं, मुक्त हुए हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त हुए हैं और उन्होंने समस्त दुःखों का अन्त किया है, वे ही करते हैं और करेंगे; इसी कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा है कि यावत् समस्त दुःखों का अन्त किया।
१३. वर्तमानकाल में भी इसी प्रकार जानना। विशेष यह है कि सिद्ध होते हैं', ऐसा कहना चाहिए। १४. भविष्यकाल में भी इसी प्रकार जानना। विशेष यह है कि सिद्ध होंगे', ऐसा कहना चाहिए।
12. (Q.) Bhante ! In the endless eternal past has a chhadmasth person (one who is short of omniscience due to residual karmic bondage) been able to get perfected (Siddha), enlightened (buddha), ... and so on up to... and end all miseries only by ascetic-discipline (samyam), only by blocking inflow of karmas (samvar), only by absolute celibacy or only by observing eight pravachan-mata (five samitis or self-regulations and three guptis or self-restraints) ?
(Ans.] Gautam ! That is not possible.
[Q.] Bhante ! Why do you say so... and so on up to... and did not end all miseries ?
[Ans.] Gautam ! Whoever has ended all karmas, has reincarnated for the last time (charam-shariri), or did, do or will end all miseries, they all have first acquired ultimate knowledge and perception to become Arhant, Jina or Kevali (omniscient) and then got perfected (Siddha), enlightened (buddha), liberated (mukta), free of cyclic rebirth (parinivrit) and ended all miseries. Only they do that and only they will do that. That is why, Gautam ! It is said so... and so on up to... did end all miseries.
13. Repeat the same in context of the present time, only change past tense to present tense. 14. Repeat the same in context of the future time, only change past tense to future tense.
१५. जहा छउमत्थो तहा आहोहिओ वि, तहा परमाहोहिओ वि। तिण्णि तिण्णि आलावगा भाणियव्वा।
१५. जैसा छद्मस्थ के विषय में कहा है, वैसा ही आधोवधिक (अवधिज्ञानी) और परमाधोवधिक (परमावधिज्ञानी) के विषय में जानना चाहिए और उसके तीन-तीन आलापक कहने चाहिए।
| प्रथम शतक : चतुर्थ उद्देशक
(113)
First Shatak : Fourth Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org