________________
karmas also. Beings of all the four genuses essentially experience the fruits of acquired karmas. However, some of these are experienced as pradesh karmas and some as anubhag karmas. To suffer (vedan) the fruits of these karmas through voluntary and conscious experience is called aabhyupagamik vedan. To suffer (vedan) the fruits of these karmas involuntarily when they come to fruition naturally at the end of their period of dormancy is called aupakramik vedan.
Yathakarma-in the same form or nature as it was acquired. Yathanikaran---not circumventing the causal parameters of place, time and status.
पुद्गल स्कन्ध और जीव के सम्बन्ध में शाश्वत प्ररूपणा ETERNALITY OF MATTER AND SOUL
७. [प्र. ] एस णं भंते ! पोग्गले अतीतमणंतं सासयं समयं 'भुवि' इति वत्तव्वं सिया ? [उ. ] हंता, गोयमा ! एस णं पोग्गले अतीतमणंतं सासयं समयं 'भुवि' इति वत्तव्वं सिया। ८. [प्र. ] एस णं भंते ! पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं भवति' इति वत्तव्वं सिया ? [उ. ] हंता, गोयमा ! तं चेव उच्चारेयव्वं । ९. [प्र. ] एस णं भंते ! पोग्गले अणागतमणंतं सासयं समयं 'भविस्सति' इति वत्तव्वं सिया ? [ उ. ] हंता, गोयमा ! तं चेव उच्चारतव्यं । १०. एवं खंदेण वि तिण्णि आलावगा। ११. एवं जीवेण वि तिण्णि आलावगा भाणितव्या।
७. [प्र. ] भगवन् ! क्या यह पुद्गल परमाणु अतीत, अनन्त, शाश्वतकाल में था-ऐसा कहा जा सकता है?
[उ. ] हाँ, गौतम ! यह पुद्गल अतीत, अनन्त, शाश्वतकाल में था, ऐसा कहा जा सकता है।
८. [प्र. ] भगवन् ! क्या यह पुद्गल वर्तमान शाश्वत-सदा रहने वाले काल में है, ऐसा कहा जा सकता है?
[उ. ] हाँ, गौतम ! ऐसा कहा जा सकता है।
९. [प्र. ] भगवन् ! क्या यह पुद्गल अनन्त और शाश्वत भविष्यकाल में रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है?
[उ. ] हाँ, गौतम ! ऐसा कहा जा सकता है। १०. इसी प्रकार ‘स्कन्ध' के साथ भी तीन (त्रिकाल सम्बन्धी) आलापक कहने चाहिए। ११. इसी प्रकार ‘जीव' के साथ भी तीन आलापक कहने चाहिए।
| प्रथम शतक : चतुर्थ उद्देशक
(111)
First Shatak : Fourth Lesson
h55555555555555555555555555555555555
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org