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________________ 55555555555555555555 4 applicable here (iham or to the other) ? Also, as according to you the 卐 statement of expoundability is applicable here (iham or to the other), म does it imply that it is applicable at this point (ettham or to self) ? 4 [Ans.] Gautam ! As according to me it is applicable at this point (ettham or to self), it implies that it is applicable here (iham or to the other). Also, as it is applicable here (iham or to the other), it implies that it is applicable at this point (ettham or to self). 卐 विवेचन : अस्तित्व का अर्थ है-जो पदार्थ जिस रूप में विद्यमान है, उसका उसी रूप में रहना। 'अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है,' इस सूत्र के दो आशय वृत्तिकार ने बताए हैं-(१) प्रथम आशय-द्रव्य एक पर्याय से दूसरे पर्याय के रूप में परिणत होता है, तथापि पर्यायरूप द्रव्य को सद्प मानना। जैसे-मिट्टीरूप पदार्थ की ॐ सत्ता सर्वप्रथम एक पिण्डरूप में होती है, वही सत्ता घटरूप में हो जाती है। दोनों अवस्था में मिट्टीरूप पदार्थ की है ॐ सत्ता विद्यमान है। (२) द्वितीय आशय-जो अस्तित्व अर्थात्-सत् (विद्यमान-सत्ता वाला) पदार्थ है, वह सत्रूप E (अस्तित्वरूप) में परिणत होता है। तात्पर्य यह है कि सत् पदार्थ सदैव सद्प ही रहता है विनष्ट नहीं होताॐ कदापि असत् (शून्यरूप) में परिणत नहीं होता। जिसे विनाश कहा जाता है, वह मात्र रूपान्तर-पर्याय परिवर्तन 5 है, 'असत् होना' या समूल नाश होना नहीं। जैसे-एक दीपक प्रकाशमान है, किन्तु तेल जल जाने से प्रकाशरूप पुद्गल अब अपनी पर्याय पलटकर अन्धकार के रूप में परिणत हो गया है। प्रकाशावस्था और अन्धकारावस्था, ॐ इन दोनों अवस्थाओं में दीपकरूप द्रव्य वही है। इसी का नाम है-सत् का सद्प में ही रहना। वस्तु में अस्तित्व और नास्तित्व दोनों धर्मों की विद्यमानता-कोई कह सकता है कि एक ही पदार्थ में अस्तित्व और नास्तित्व, ये दो विरोधी प्रतीत होने वाले धर्म कैसे रह सकते हैं ? परन्तु जैनदर्शन का सिद्धान्त है कि । पदार्थ में अस्तित्व और नास्तित्व दोनों धर्म विभिन्न अपेक्षा से विद्यमान हैं, अपेक्षाभेद के कारण इन दोनों में + विरोध नहीं रहकर साहचर्य सम्बन्ध हो जाता है। जैसे-वस्त्र में अपने स्वरूप की अपेक्षा अस्तित्व है किन्तु मिट्टी आदि पररूप की अपेक्षा से नास्तित्व है। अतः वस्तु केवल सत्तामय नहीं, किन्तु सत्ता और असत्तामय है। नास्तित्व की नास्तित्वरूप में परिणति-इस सूत्र की एक सरल व्याख्या यह है कि जिस वस्तु में जिसकी जिस रूप में नास्ति है, उसकी उसी रूप में नास्ति रहती है। जैसे-अंगुली का अंगूठा आदि के रूप में न होना, अंगुली ॐ का (अंगुली की अपेक्षा से) अंगूठा आदि रूप में नास्तित्व है। इसे यों कहा जा सकता है-जो अंगुली अंगुष्ठादिरूप म ॐ नहीं है, वह अंगुष्ठादि नहीं होती। इसका यह अर्थ नहीं है कि अंगूठे की अंगूठे के रूप में नास्ति है। जो है, वही 5 है, अन्यरूप नहीं है। के अस्तित्व का अस्तित्वरूप में परिणमन दो प्रकार से होता है-प्रयोग से (जीव के व्यापार से) और स्वभाव से 卐 म (विश्रसा)। प्रयोग से, यथा-कुम्हार की क्रिया से मिट्टी के पिण्ड का घटरूप में परिणमन। स्वभाव से, यथा-सफेद बादल काले बादलों के रूप में किसी की क्रिया के बिना, स्वभावतः परिणत होते हैं। नास्तित्व का नास्तित्वरूप में 卐 परिणमन भी दो प्रकार से होता है-प्रयोग से और स्वभाव से। प्रयोग से, यथा-घटादि की अपेक्षा से मिट्टी का 9 म पिण्ड नास्तित्वरूप है। स्वभाव से, यथा-पृच्छाकाल में सफेद बालों में कृष्णत्व का नास्तित्व। के गमनीयरूप का आशय-गमनीय का अर्थ है-प्ररूपणा करने योग्य। आशय यह है कि पहले जिस सिद्धान्त का " के प्रतिपादन किया गया है, वह केवल समझने के लिए है या प्ररूपणा करने योग्य भी है ? 'एत्थं' और 'इहं' 卐 a55555 5 5 555555555 5 555 55 55555 55 555555 55 5555555555 5 乐 भगवतीसूत्र (१) (90) Bhagavati Sutra (1) 85555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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