SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 955555555555555555555555555 18. (Q.) Bhante ! Does a living being indulge in antakriya (the ultimate activity)? [Ans.) Gautam ! Some being indulges in the ultimate activity and some does not. In this regard refer to Antakriyapad of Prajnapana Sutra (20th chapter). विवेचन : जिस क्रिया के पश्चात् फिर कभी दूसरी क्रिया न करनी पड़े, वह अथवा कर्मों का सर्वथा अन्त करने वाली क्रिया अन्तक्रिया है। निष्कर्ष यह है कि भव्य जीव ही मनुष्यभव पाकर अन्तक्रिया (मोक्ष-प्राप्ति की क्रिया) करता है। Elaboration–The activity that ends all activities is called antakriya. In other words the activity that destroys all karmas is the ultimate activity. The indication is that only a spiritually worthy being is born as a human being and only he performs the antakriya to attain liberation. असंयत भव्य द्रव्यदेव का उपपात BIRTH OF ASAMYAT BHAWA DRAVYADEVA १९. [प्र. ] अह भंते ! असंजयभवियदव्वदेवाणं १, अविराहियसंजमाणं २, विराहियसंजमाणं ३, अविराहियसंजमासंजमाणं ४, विराहियसंजमासंजमाणं ५, असण्णीणं ६, तावसाणं ७, कंदप्पियाणं ८, चरगपरिवायगाणं ९, किदिवसियाणं १०, तेरिच्छियाणं ११, आजीवियाणं १२, आभिओगियाणं १३, सलिंगीणं दंसणवावनगाणं १४, एएसि णं देवलोगेसु उववज्जमाणाणं कस्स कहिं उववाए पण्णत्ते ? [उ. ] गोयमा ! अस्संजतभवियदव्वदेवाणं जहन्नेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं उवरिमगेविज्जएसु १। अविराहियसंजमाणं जहनेणं सोहम्मेकप्पे, उक्कोसेणं सबटुसिद्धे विमाणे २। विराहियसंजमाणं जहन्नेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं सोधम्मेकप्पे ३। अविराहियसंजमाऽसंजमाणं जहन्नेणं सोहम्मेकप्पे, उक्कोसेणं अच्चुएकप्पे ४। विराहियसंजमासंजमाणं जहन्नेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं जोतिसिएसु ५। असण्णीणं जहन्नेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं वाणमंतरेसु ६। अवसेसा सव्वे जहन्नेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं वोच्छामि-तावसाणं जोतिसिएसु ७। कंदप्पियाणं सोहम्मेकप्पे ८। चरगपरिवायगाणं बंभलोएकप्पे ९। किदिवसियाणं लंतगेकप्पे १०। तेरिच्छियाणं सहस्सारेकप्पे ११। आजीवियाणं अच्चुएकप्पे १२। आभिओगियाणं अच्चुएकप्पे १३। सलिंगीणं दंसणवावनगाणं उवरिमगेवेज्जएसु १४। १९. [प्र. ] भगवन् ! (१) असंयत भव्य द्रव्यदेव, (२) अखण्डित संयम वाला, (३) खण्डित संयम वाला, (४) अखण्डित संयमासंयम (देशविरति) वाला, (५) खण्डित संयमासंयम वाला, (६) असंज्ञी, (७) तापस, (८) कान्दर्पिक, (९) चरकपरिव्राजक, (१०) किल्विषिक, (११) तिर्यंच, (१२) आजीविक, (१३) आभियोगिक, (१४) दर्शन (श्रद्धा) भ्रष्ट वेशधारी, ये सब यदि देवलोक में उत्पन्न हों तो, किसका कहाँ उपपात (उत्पत्ति) होता है ? [उ.] गौतम ! (१) असंयत भव्य द्रव्यदेवों का उत्पाद जघन्यतः भवनवासियों में और उत्कृष्टतः ऊपर के ग्रैवेयकों में होता है, (२) अखण्डित (अविराधित) संयम वालों का जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट प्रथम शतक : द्वितीय उद्देशक (75) First Shatak : Second Lesson 55555555555555555555555555$$$$$$$$$ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy