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चित्र परिचय-२
Illustration No.2
नरक संस्थान-काल नरक में नारकों की स्थिति को तीन काल से समझना चाहिए। (१) अशून्य काल-जिस काल में नरक में न तो कोई नया जीव बाहर से आकर उत्पन्न होता है
और न ही कोई नारक नरक छोड़कर जाता है। जितने नारक विद्यमान हैं, उतने ही रहते हैं। आगमन एवं निर्गमन द्वार जब बन्द रहता है, वह अशून्य काल। (२) शून्य काल-जिस समय नरक में एक भी नारक जीव विद्यमान न रहे। आगमन बन्द है, जाने वाले सब जा चुके हैं। नरकभूमि खाली है। वह शून्य काल होता है। (३) मिश्र काल-नरक में स्थित नारकों में से निकलने का क्रम चालू है। कुछ निकल चुके, कुछ निकल रहे हैं, कुछ वहाँ विद्यमान हैं। इस मध्य काल को मिश्र काल कहा जाता है।
-शतक १, उ. २, सूत्र १५, पृष्ठ ७३
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NARAK SAMSTHAN KAAL The duration of existence in the infernal world is of three kinds. (1) Ashunya kaal (period of absolute nonreplacement)—The period till neither a single infernal being leaves the infernal world nor a new one is born among them is called Ashunya kaal. The total number of beings remains constant. The doors to come in and go out are closed. (2) Shunya kaal-The period when not even a single being of this generation is left in the infernal world. Coming in is stopped and those who had to go have gone. The infernal world is empty. This is called Shunya kaal. (3) Mishra kaal-The period when the process of leaving the infernal world is on. Some have gone, some are going and some continue to exist there. This middle period is called Mishra kaal.
--Shatak 1, lesson 2, Sutra 15, page 73
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