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[प्र. ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[उ. ] गौतम ! नारक तीन प्रकार के होते हैं, यथा-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग-मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि)। जो सम्यग्दृष्टि हैं, उनके चार क्रियाएँ होती हैं-(१) आरम्भिकी, (२) पारिग्रहिकी, (३) मायाप्रत्यया, और (४) अप्रत्याख्यानक्रिया। जो मिथ्यादृष्टि हैं, उनमें आरम्भिकी से लेकर मिथ्यादर्शनप्रत्यया तक पाँच क्रियाएँ होती हैं। इसी प्रकार सम्यग्-मिथ्यादृष्टि के भी पाँचों क्रियाएँ समझनी चाहिए। इस कारण गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सब नारक समान क्रिया वाले नहीं हैं।
[Q.6] Bhante ! Do all infernal beings have the same activities (kriya)? [Ans.] Gautam ! That is not possible.
[Q.] Bhante ! Why do you say so? ___ [Ans.] Gautam ! Infernal beings are said to be of three kindsSamyagdrishti (righteous), Mithyadrishti (unrighteous) and Samyag. mithyadrishti (mixed). The Samyagdrishti (righteous) have four activities—(1) Arambhiki (act of violence), (2) Paarigrahiki (act of possession and hoarding), (3) Maayapratyayaa (activity involved in indulgence in deceit), and (4) Apratyakhyana kriya (indisciplined action in absence of resolve of abstainment). The Mithyadrishti (unrighteous) have five activities from Arambhiki to (5) Mithyadarshanapratyayaa (activity involved in indulgence in false perception/faith); the same is true for Samyag-mithyadrishti (mixed). That is why, Gautam ! It is said that all infernal beings do not have the same activities.
[प्र. ७ ] नेरइया णं भंते ! सव्वे समाउया ? सब्बे समोववनगा ? [उ. ] गोयमा ! णो इणढे समढे। [प्र. ] से केणटेणं?
[उ. ] गोयमा ! नेरइया चउबिहा पण्णत्ता। तं जहा-१. अत्थेगइया समाउया समोववनगा, २. अत्थेगइया समाउया विसमोववनगा, ३. अत्थेगइया विसमाउया समोववन्नगा, ४. अत्थेगइया विसमाउया विसमोववन्नगा। से तेणटेणं गोयमा !.....
[प्र. ७ ] भगवन् ! क्या सभी नारक समान आयुष्य वाले हैं और समोपपन्नक-एक साथ उत्पन्न होने वाले हैं?
[उ. ] गौतम ! यह अर्थ सम्भव नहीं है। [प्र. ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ?
[उ. ] गौतम ! नारक जीव चार प्रकार के होते हैं-(१) समायुष्क समोपपत्रक समान आयु वाले और एक साथ उत्पन्न हुए, (२) समायुष्क विषमोपपन्नक (समान आयु वाले और पहले-पीछे उत्पन्न हुए),
प्रथम शतक : द्वितीय उद्देशक
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First Shatak : Second Lesson
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