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हो तो उनके समक्ष आकर क्षमा माँग लो। अन्यथा नीति-अनीति का फैसला युद्धभूमि में तो होगा ही।"
यवनराज क्रोध में आकर बोला-"मूर्ख ! कायर ! अपने स्वामी को कहो, भुजाओं में बल है तो मैदान में आये।"
दूत-"यवनराज ! हमारे स्वामी की दया को तुम दुर्बलता समझने की मूर्खता मत करो। युद्ध का परिणाम विनाश होता है। इसलिए एक अवसर तुमको दिया जा रहा है।"
दूत की बातें सुनकर सभासद क्रोधित हो उठे। खड़े होकर बोले-"मूर्ख ! तू अपने स्वामी का दुश्मन है क्या ? क्यों यवनराज को क्रोधित कर रहा है। जैसे साँप और सिंह को उत्तेजित करने वाला अपनी मौत पुकारता है, वैसा ही तू दीखता है।"
तब यवनराज के वृद्ध मंत्री ने उठकर कहा-"सभासदो ! अपने स्वामी का द्रोही यह नहीं, किन्तु आप हैं।" ____ यवनराज चकित होकर मंत्री की तरफ देखता है। मंत्री बोलता है-"स्वामी ! पार्श्वकुमार कोई सामान्य पुरुष नहीं, वह अनन्तबली तीर्थंकर पदधारी हैं। हजारों देव-देवेन्द्र उनकी सेवा करते हैं। वासुदेव और चक्रवर्ती से भी अधिक बली हैं। ऐसे लोकोत्तर पुरुष से टकराना पर्वत से टकराने जैसा है।"
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क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
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