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________________ प्रातः प्रस्थान के लिए निकले तभी आकाश से एक दिव्य रथ उतरा। (उसमें चार बलिष्ठ सुन्दर श्वेत घोड़े जुते हुये थे। सूर्य के रथ के समान दिव्य तेज किरणें फूट रहीं थीं।) __एक दिव्य शस्त्रधारी सारथी रथ से उतरकर पार्श्वकुमार को प्रणाम करता है-"मैं सौधर्मेन्द्र का सारथी प्रणाम करता हूँ।" (पार्श्वकुमार ने हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया।) सारथी-"देव ! इन्द्र महाराज ने निवेदन किया है, यद्यपि आप अनन्तबली हैं। आपकी अंगुली हिलते ही तीन लोक कंपायमान हो सकता है। आपको किसी की सहायता की अपेक्षा नहीं है। फिर भी भक्ति भावना के वश इन्द्रदेव ने दिव्य शस्त्रों से सज्जित यह दिव्य रथ भेजा है। इस पर विराजने का अनुग्रह करें।" पार्श्वकुमार रथ पर आसीन होते हैं। दिव्य रथ सूर्य के रथ की तरह धरती से ऊपर उठकर चलने लगा। धरती पर हाथी, घोड़े, रथ, पैदल सैनिकों की विशाल सेना पीछे-पीछे चल रही थी। कुशस्थल के बाहर आकर सीमा पर पड़ाव डाला। KATEO IDO 42_ducation International For Private & Personal Use Only क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
SR No.002856
Book TitleBhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 057 058
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamsuri, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size11 MB
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