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क्षमावतार भगवान पार्श्वनाथ
जैनधर्म के चौबीस तीर्थंकरों में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव थे और अंतिम तीर्थंकर हुए भगवान : महावीर । तेईसवें तीर्थंकर थे भगवान पार्श्वनाथ ।
भगवान पार्श्वनाथ निस्संदेह ऐतिहासिक महापुरुष थे। सभी इतिहासकार उनकी ऐतिहासिकता स्वीकार करते हैं। उनका जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व भारत के पूर्वांचल में प्रसिद्ध धर्मनगरी वाराणसी (काशी) में हुआ।
जैनधर्म के चौबीस तीर्थंकरों में आज सबसे अधिक प्रकट प्रभावी और व्यापक प्रसिद्धि वाले तीर्थंकर पार्श्वनाथ हैं। भारत में जितने प्राचीन तथा नवीन जिन मन्दिर पार्श्वनाथ के हैं, जितने स्तोत्र, स्तुतियाँ, मंत्र व भक्ति गीत पार्श्वनाथ से सम्बन्धित हैं, उतने अन्य तीर्थंकरों के नहीं हैं। भगवान पार्श्वनाथ का नाम रिद्धि-सिद्धि दायक गणेश की तरह, संकट मोचक हनुमान की तरह और शीघ्र फलदायी आशुतोष भोले शंकर की तरह बाल, वृद्ध, स्त्री, पुरुष सभी के लिए ध्येय व मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है।
इसीलिए उनका एक विशेषण प्रसिद्ध है-चिंतामणि पार्श्वनाथ । जैनों के अतिरिक्त हजारों अजैन भी भगवान पार्श्वनाथ की उपासना आराधना करते हैं।
कहा जाता है, तथागत बुद्ध ने बोधिप्राप्त करने से पहले भगवान पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म स्वीकार किया था। बौद्ध ग्रंथों में चातुर्याम संवर धर्म का बार-बार उल्लेख आता है। यह भी माना जाता है कि गोरखनाथ, सिद्धनाथ जैसे योगी भगवान पार्श्वनाथ की उपासना करते थे।
प्रभु पार्श्वनाथ का नाम अचिन्त्य महिमाशाली और सर्वकार्य सिद्धिदायक है।
प्रस्तुत पुस्तक में भगवान पार्श्वनाथ के करुणामय परोपकारी जीवन के पिछले नौ जन्मों से लेकर तीर्थंकर बनने तक अथ से इति तक का जीवनवृत्त है। जिससे हमें शिक्षा मिलती है कि क्षमा करने वाला महान होता है। क्षमा करने से आत्मा पवित्र और निर्मल बनता है। -महोपाध्याय विनय सागर
-श्रीचन्द सुराना 'सरस' • लेखक : आचार्यश्री विजय जिनोत्तम सूरीश्वर जी म. . सम्पादक: प्रकाशन प्रबंधक:
चित्रांकन : श्रीचन्द सुराना 'सरस'
संजय सुराना
श्यामल मित्र
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अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) RAULILLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLINS
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