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उसी समय दो युवा श्रमण भिक्षा पात्र हाथ में लिए नगर सेठ धनपाल के भवन की तरफ आये।
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गुरुदेव ! पधारिये !
सेवकों ने उसे रोक दिया
ठहर जा ! अभी गुरूदेव आहार के लिए पधारे हैं। हल्ला मत कर।
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सम्राट सम्प्रति
श्रमणों को आता देखकर सेवकों ने दरवाजा खुला छोड़ दिया, श्रमण जैसे ही भवन में घुसते हैं उनके पीछे-पीछे एक भिखारी छुपता-छुपता भीतर आ गया। दण्डधारी सेवकों ने उसे रोक दिया
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अरे ! कहाँ घुस
रहा है? रुक जा !
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बाबा ! तीन दिन का भूखा-प्यासा हूँ। देखो पेट की पसलियाँ दीख रही हैं। एक रोटी दे दो। भूख से मरा जा रहा हूँ और दम भी नहीं निकल रहा है।
भिखारी टुकर-टुकर देख रहा है
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अहा ! क्या स्वादिष्ट भोजन है। इसकी सुगंध से ही मेरे मुँह में पानी, छूट रहा है।
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