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________________ अगले दिन शरतश्री ने सुविचार है। कुणाल से कहा स्वामी ! पास ही उपाश्रय में आर्य सुहस्ती शिष्य विराजमान हैं। उनके दर्शन भी कर लेवें। Jain Education International PA मुनिराज ने कहा प्रतिदिन प्रवचन में वीतराग वाणी का श्रवण कीजिए। जीवन में शान्ति का अनुभव होगा। सम्राट सम्प्रति कुमार अपने परिवार के साथ मुनिराज के दर्शन करने गया। | मुनिवर ने कहा गुरुदेव ! मुझे आप धर्म का बोध दीजिए। इस अपंग जीवन में तो धर्म ही मेरा सहारा है। अब कुमार अपने परिवार के साथ प्रतिदिन प्रवचन सुनने आता और वीतराग वाणी सुनकर प्रसन्न होता। एक दिन राजकुमार ने मुनिराज से निवेदन किया | गुरुदेव ! आपकी वाणी सुनकर तो मेरा मन संसार से विरक्त हो गया है। मैं भी शुद्ध संयम का पालन कर आत्म-कल्याण करना चाहता हूँ। कुमार रात्रि कालीन आपकी भक्ति तल्लीनता देखकर तो हमारा मन भी गद्गद हो गया। भक्ति के साथ धर्म का बोध और धर्माचरण का संगम हो जाय तो सोने में सुगंध मिल जाय। For Private & Personal Use Only कुमार, आप गृहस्थाश्रम में रहकर ही धर्माराधना कर सकते हैं। आँखें नहीं होने से जीव दया का पालन नहीं हो सकता और जीव दया के बिना चारित्र की शुद्ध आराधना नहीं हो सकती। www.jainelibrary.org
SR No.002844
Book TitleSamrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamsuri, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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