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सम्राट सम्प्रति
कुछ समय बाद सम्राट् अशोक के पास दूत समाचार दूत ने महाराज को पत्र दिखाया तो वे चौंक गयेलेकर आया
आपकी आज्ञा से
अधीयतां को
राजकुमार कुणाल ने अपनी आँखें फोड़ लीं हैं।
हैं ! मैंने ऐसी कठोर आज्ञा कब दी ?
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सम्राट अशोक दुःख के सागर में डूब गये।
इधर अवन्ती में अँधा कुणाल धाय माता सुनन्दा की देख-रेख में पलने लगा। अँधेपन के एकाकी जीवन में कुणाल तानपूरे को अपना साथी बना लिया। वह एकान्त में तानपूरा बजाता रहता और प्रभु आदिनाथ की भक्ति करता रहता।
जय आदिनाथ जग हितकारी जय वीतराग मंगलकारी
अंधीयतां किसने कर दिया? कब किया? कौन छिपा शत्रु है यह?
एक दिन कुणाल की धाय माता सुनन्दा ने सम्राट् अशोक को पत्र भेजा। सम्राट् ने पत्र पढ़ा
समय अपनी गति से चलता रहा।
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महाराज अशोकवर्द्धन के चरणों में सुनन्दा का प्रणाम। कुमार कुणाल अब बीस वर्ष का हो गया है। दिन-रात एकाकी प्रभुभक्ति में अपना नीरस जीवन बिता रहा है। निवेदन है किसी योग्य राजकुमारी के साथ कुमार का विवाह कर दिया जाय तो उसके सूने जीवन में फिर से बहार आ सकती है।
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