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________________ सम्राट सम्प्रति कुछ समय पश्चात् अशोक की मृत्यु हो गई। काशी पहुंचने पर वहाँ के गुप्तचरों ने राजा को सूचना दीकई दिन तक मगध राज्य शोक में डूबा रहा।। मगधेश्वर सम्राट् सम्प्रति शोक से उबरने पर सम्प्रति ने विचार किया अद्भुत शौर्य का धनी योद्धा MAYAVARANAमुझे अपने साम्राज्य है। उसकी सेना अजेय है। स्तार करना उससे युद्ध करना सर्वनाश LI चाहिए। को निमंत्रण देना है। काशी आदि के राजाओं ने मिलकर निर्णय लिया DMI/ व्यर्थ ही नरसंहार से क्या लाभ का है? उगते सूर्य का प्रताप बादलों से ढक नहीं सकता। विशाल सेना के साथ वह काशी कौशल आदि राज्यों पर विजय करने निकल पड़ा। राजाओं ने अनेक तरह के उपहार और अपनी कन्यायें | अनेक देशों की विजय यात्रा करते हुए सम्राट भेंट कर सम्प्रति की अगवानी की। सम्प्रति ने प्रेमपूर्वक सम्प्रति अवन्ति वापस पहुंचे। अवन्ति में उनका उपहार स्वीकार किये-/मझे आपका ऐश्वर्य वैभव नहीं चाहिए। भव्य स्वागत हुआ।। (हम आपकी शरण) न ही मैं प्रजा का संहार करना चाहता में ही हैं। हूँ। आप मगध की छत्र छाया में रहें। बस यही हमारी आज्ञा है। सम्राट् सम्प्रतिmte की जय हो। सम्राट् सम्प्रति चिरायु हों। HERE काशी आदि राज्यों को अपनी छत्र-छाया में मिलाने के पश्चात् सम्प्रति ने मालवा, गुजरात, सौराष्ट्र आदि को विजय करके दूर-दूर देशों तक मगध साम्राज्य का विस्तार किया। Jain Education International For Private 22 rsonal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.002844
Book TitleSamrat Samprati Diwakar Chitrakatha 045
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamsuri, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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