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सम्राट सम्प्रति
धाय माँ की बात सुनकर कुणाल के चेहरे पर चमक आ गई। उसने तानपूरा उठाया और एकदम खड़ा हो गया
माँ तुम्हारी बातें सुनकर मेरे भीतर उत्साह की बिजली दौड़ गई है। भविष्य का सुन्दर स्वप्न मेरी अन्तर्दृष्टि में झलक रहा है। मैं पाटलीपुत्र अवश्य जाऊँगा।
वत्स ! तेरा स्वप्न अवश्य पूरा होगा।
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अगले दिन अंधे कुणाल ने तानपूरा गले में लटकाया, कंधे पर झोला डाला हाथ में लठ्ठी लेकर एक गरीब गवैये के वेष में पाटलीपुत्र की ओर चल पड़ा।
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सुख के सब साथी दुखा न कोय
पाटलीपुत्र पाटलीपुत्र के राजमार्ग पर एक अंधा तानपूरा हाथ में लिए प्रभु भक्ति के गीत गाता हुआ घूम रहा है। | उसके पीछे लोगों की भीड़ चल रही है। कुछ लोग कहते हैं
अरे भाई, साक्षात् गंधर्वकुमार का रूप लगता है। देखो, इसके स्वरों में कितना दर्द है। दिल को छू जाता है। जादू है इसके तानपूरा में।
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