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________________ रूप का गर्व देव अपने असली रूप में आ गये। उन्होंने भक्तिपूर्वक मुनि को प्रणाम कियाधन्य है अद्भुत तपोयोगी । क्षमा करें महामुने ! हमें शक्रेन्द्र की बात पर विश्वास नहीं हुआ था, परन्तु आज आपकी उग्र तितिक्षा-सहिष्णुता, देह के प्रति अनासक्ति और तपोलब्धियाँ देखकर हम चकित हो गये। 同 SHRTE M For Private & Personal Use Only 31 काজ रा तीन प्रदक्षिणा कर देवताओं ने मुनि सनत्कुमार की वन्दना की और स्वर्ग को चले गये। मुनि सनत्कुमार ने ७०० वर्ष तक इसी प्रकार की घोर तप साधना करने के बाद अन्तिम समय में संलेखना ग्रहण की। जा पंच-परमेष्ठी का ध्यान करते हुए समाधिपूर्वक प्राण त्यागकर वे पाँचवें सनत्कुमार देवलोक में उत्पन्न हुए। कथाबोध प्राणी जो शुभ कर्म करता है उसका इस जन्म में और अगले जन्म भी शुभ फल मिलता है। तो किसी के साथ द्वेष और शत्रुता करके उसके बुरे फल भी पाता है। सनत्कुमार का चरित्र यही सचाई प्रगट करता है। पूर्व जन्मों में की तपस्या और सेवा के प्रभाव से वह चक्रवर्ती सम्राट बना। इतना सुन्दर और आकर्षक रूप मिला, कि देखकर देव भी दाँतों तले अंगुली दबाने लगे। इस रूप का गर्व उनके मन में हुआ किन्तु देवताओं ने उनके अहंकार की पोल खोल दी कि जिस शरीर-सौन्दर्य पर आप इतना गर्व कर रहे हैं, उस शरीर में कितने रोग और व्याधियाँ छिपी हैं? शरीर की इस वास्तविकता को पहचानो ! वास्तव में परोपकार, तप ध्यान आदि करने में ही मानव देह की सार्थकता है। www.jainelibrary.org/
SR No.002837
Book TitleRup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size20 MB
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