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रूपका गर्व मुनि ने अपनी एक व्रण ग्रस्त अंगुली पर थूक लगाया क्षणभर में वह पूर्ण स्वस्थ सुन्दर हो गई।
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फिर बोले
शरीर के सब रोगों की चिकित्सा इसी के भीतर विद्यमान है, परन्तु मुझे इन रोगों की जरा भी चिन्ता नहीं है। न ही ये मुझे कष्ट दे रहे हैं।
देवता अवाक् से मुनि की मुख-मुद्रा देखते रह गये। मुनि ने कहा-
मुझे तो भाव रोगों की चिकित्सा करनी है और उसी के लिए तप-संयम-ध्यान की
साधना में लगा हूँ।
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