________________
रूप का गर्व एक बार दो दिन के उपवास, तप का पारणा लेने वे एक गृहस्थ फिर गृहस्थ के हाथ से वही भिक्षा ग्रहण की के घर पर गये। गृहस्थ ने कहा
और पारणा किया। उन्हें लगा जैसे शरीर की ममता और अहंकार एक साथ चरमराने लगे हैं। जिस शरीर को छप्पन भोगों का प्रसाद चढ़ता था आज उसे यह रूखा
नीरस भोजन !
CERIA
TIOAM
मुनि ! मेरे यहाँ तो केवल छाछ और उबला हुआ जौ है।
तथास्तु
daunusedLANI
Cal
निरन्तर तप-आतापना, पद-विहार और रूखा भोजन आदि के कारण धीरे-धीरे शरीर में रोगों का प्रभाव बढ़ता गया। किन्तु फिर भी मुनि सनत्कुमार ने कभी शरीर की चिन्ता नहीं की।
तभी विरक्ति ने उन्हें ललकारा
। इतने पकवान
खाकर भी जो शरीर धोखा देता है, उसे तो
यही दण्ड मिलना 1 चाहिए न?
Education International
For Private
personal Use Only
www.jainelibrary.org