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रूप का गर्व उसी समय उन आठ कन्याओं के पिता भानुवेग भी सेना अब अशनिवेग की सेना ने सनत्कुमार के समक्ष लेकर सनत्कुमार की खोज करते हुए आ पहुंचे। दोनों समर्पण कर कहा
| हे पराक्रमी कुमार ! कृपया सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। सनत्कुमार ने चक्र द्वारा
| आप हमारे साथ वैताढ्य पर्वत अशनिवेग का मस्तक काट डाला।
हे देव ! अब आप ही)
पर पधारें। हम आपके विजय हमारे स्वामी हैं।
के उपलक्ष्य में उत्सव का VVVT
आयोजन करना चाहते हैं।
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अनेक विद्याधर राजाओं के साथ सनत्कुमार वैताढ्य पर्वत पर
गया। वहाँ आठ दिन तक उसका विजयोत्सव मनाया गया। एक दिन वैताढ्य पर्वत निवासी विद्याधरों के राजा ने सनत्कुमार ने हँसकर कहासनत्कुमार से कहा- /कुमार ! मैंने बहुत दिन
पहले एक ऋद्भिधारी मुनि के दर्शन किये थे। उनके दर्शन कर मैंने पूछा
हमारे भाग्य ने आपको तब तो बिना बुलाये गुप्त आमंत्रण दिया है। ही हम आ गये? अनुग्रह कर हमारी यह
st: भेंट स्वीकार कीजिए!
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ऋषिवर ! मेरी बकुलमति आदि सौ कन्याओं का पति कौन होगा?
राजन् ! चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार यहाँ आयेंगे और वे ही इन कन्याओं के पति होंगे।
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