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सनत्कुमार भी समुद्र में तैरता हुआ | |किनारे पर आया और वापस महल में| आकर सुनन्दा से मिला। बोला
रूप का गर्व वहीं दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। तभी विद्याधर की बहन संध्यावली बिफरी हुई सी वहाँ आ पहुँची। उसने पूछामेरे भाई को किसने मारा? -
सुनन्दा ! अब तुम निश्चिन्त हो जाओ ! वह दुष्ट अपने पापों का फल
पा चुका है।
सुन्दरी ! तुम्हारा भाई मेरे हाथों मर चुका । है। उसे अपने पापों का फल मिल गया।
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यह सुनकर संध्यावली सनत्कुमार के वह बातें कर ही रहे थे तब तक संध्यावली का पिता अशनिवेग चरणों से लिपट गई। बोली
अपनी सेना लेकर आ गया। उसने सनत्कुमार को ललकारादुष्ट ! तूने मेरे पुत्र का वध किया है। अब यमलोक जाने को तैयार हो जा।
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आर्यपुत्र ! नैमित्तिक ने कहा था, जो मेरे भाई की घात करेगा वही मेरा पति होगा। इसलिए आप ही मेरे स्वामी । हैं। मुझे स्वीकार कीजिये !
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