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करुणानिधान भगवान महावीर भगवान महावीर लोक भाषा में ही अपना उपदेश देते थे। बड़े-बड़े सम्राट एवं श्रेष्ठियों के साथ सामान्य व्यक्ति श्रमिक, स्त्रियाँ आदि सभी जाति और धर्म के लोग उनकी वाणी सुनते और अहिंसा, सत्य एवं सदाचार के नियम ग्रहण करते।
भव्यों ! असीम इच्छा और तृष्णा ही दुःख का कारण है। यदि
सुख-शान्ति चाहते हो तो अपनी इच्छायें कम करो। सबके साथ मैत्री
और समभाव का बर्ताव करो।
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तीर्थकर जीवन के बियालीसवें वर्ष में भगवान महावीर ने एक दिन अपना अन्तिम समय पावापुरी के राजा हस्तिपाल की प्रार्थना पर उनकी रज्जुक सभा निकट जानकर भगवान ने सोचा। में वर्षावास किया।
मैं जीवन-मरण के चक्र से मुक्त होने वाला हूँ। मेरा शिष्य गौतम मुझसे अत्यधिक स्नेह रखता है। मेरे निर्वाण के समय यह अत्यधिक व्याकुल हो उठेगा।
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