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करुणानिधान भगवान एकबार भगवान महावीर ग्रीष्म ऋतु में सिंधु देश की तरफ विहार कर रहे थे। रास्ते में बूढ़े बैलों को पीट-पीटकर अपना खेत जोत रहा था। महावीर ने गणधर गौतम से कहा
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गौतम किसान के पास आकर बोले
भद्र ! इन बूढ़े बैलों को इ मारो ! क्या इन्हें कष्ट नहीं होता?
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गौतम ! वह अबोध किसान, बूढ़े बैलों को कितनी निर्दयता से पीट रहा है?
जाओ! तुम समझाओ उसे!
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महाराज ! कष्ट तो होता ही है। परन्तु इनसे खेत नहीं जोतूं तो मैं गरीब किसान भूखा मर जाऊँगा। मेरे पास दूसरी जोड़ी खरीदने को पैसा भी तो नहीं है।
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गौतम ने किसान को स्नेहपूर्वक दया का महत्व समझाया। गौतम की स्नेहमयी वाणी और करूणापूर्ण मुद्रा से किसान का मन गद्गद् हो गया। उसने कहा
महाराज ! आपको देखकर तो लगता है, मैं आपके साथ ही रहूँ। किसी प्राणी को कष्ट नहीं दूँ। क्या आप मुझे अपना शिष्य बना लोगे?
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