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करुणानिधान भगवान महावीर
वह सिंह हाथी, पिशाच, सर्प आदि का भयंकर रूप बनाकर महावीर को भयभीत करने का प्रयत्न करता रहा।
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रात के तीन प्रहर तक उपद्रव मचाता हुआ शूलपाणि अन्त में थककर चूर-चूर हो गया। तभी सिद्धार्थ नामक व्यन्तर देव ने प्रकट होकर शूलपाणि को समझाया।
दुष्ट शूलपाणि तूने यह क्या किया? जो इन्द्र के भी पूज्य हैं उनकी तूने असाधना की। अगर इन्द्र को पता चला गया तो तुझे नष्ट कर देंगे।
भगवान महावीर पत्थर की मूर्ति की भाँति स्थिर खड़े रहे।
वह भगवान से क्षमा माँगने लगा। महावीर ने नेत्र खोलकर शूलपाणी की तरफ देखा, शूलपाणी को अपने हृदय में भगवान की करुणामय वाणी गूँजती हुई महसूस हुई।
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शान्त हो जाओ शूलपाणी। मन सेक्रूरता और घृणा का जहर निकाल दो तभी शान्ति मिलेगी।
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यह सुनकर शूलपाणि यक्ष घबरा गया। शूलपाणी भगवान के चरणों में नतमस्तक हो गया।
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