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करुणानिधान भगवान महावीर आश्रम के अनुभव से श्रमण महावीर ने मन || वहां से विहार करते हुए श्रमण महावीर एक पुराने ही मन पांच संकल्प (अभिग्रह) लिये-- टूटे-फूटे मन्दिर पर पहुंचे। गाँव वाले महावीर के पास
आकर बोले
TIMIUIDAIMALA किसी अप्रीति कर स्थान में नहीं।
सुकुमार श्रमण ! यहाँ शूलपाणि नाम का ठहरूँगा। सदा ध्यानलीन रहूँगा। मौन । रहूँगा। हाथ में ही भोजन करूंगा।
क्रूर यक्ष रहता है। वह रात में आपको गृहस्थों से सम्पर्क नहीं रखूगा।
जीवित नहीं छोड़ेगा। आप कोई दूसरा Ramma स्थान देख लीजिए न?
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परन्तु श्रमण महावीर तो स्वयं अभय थे। गाँव वालों का भय दूर | करने के लिए वे उसी मन्दिर के एक भाग में ध्यानस्थ खड़ें हो गये।
रात का अँधेरा हो जाने पर शूलपाणि यक्ष हुँकारता-फुकारता आया। एक मनुष्य को अपने स्थान पर खड़ा देखकर आग-बबूला हो उठा
'कौन है यह मौत को चाहने वाला /
इसकी यह हिम्मत ?
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