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करुणानिधान भगवान महावीर
सोमशर्मा वह वस्त्र लेकर एक रफूगर के पास आया।
मुझे इसकी क्या इसका आधा भाग ओर ले आओ तो यह एक कीमत मिल जायेगी ? लाख सौनेया में बिक जायेगा आधीसौनेया हम आपस में बाँट लेंगे।
सोमशर्मा ने कई दिन तक श्रमण महावीर के पीछे-पीछे घूमकर आधा वस्त्र और प्राप्त कर लिया।
एक दिन महावीर खण्डहर में ध्यानस्थ खड़े थे। दो प्रेमी एकान्त समझकर वहाँ आये। महावीर को खड़ा देखकर वे गालियाँ देने लगे, उन पर पत्थर फैंकने लगे। महावीर के शरीर पर घाव हो गये।
अरे ! तू कौन है? यहाँ क्यों खड़ा है। चल निकल जा यहाँ से..
महावीर चुपचाप वहाँ से हटकर कड़कड़ाती सर्दी में एक वृक्ष के नीचे जाकर ध्यानस्थ हो गये।
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और उसे रफूगर से जुड़वाकर महाराज नन्दीवर्धन को एक लाख सोनैया में बेच दिया।
वर्षाकाल समीप आने पर श्रमण महावीर तापसों के एक आश्रम में गये। महावीर को पहचान कर कुलपति ने उनसे आग्रह कियासिद्धार्थ नन्दन आइये ! कुमार श्रमण ! आप हमारे आश्रम की झोपड़ी में ठहरिये और यहीं अपनी साधना कीजिए।
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