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करुणानिधान भगवान महावीर देवराज इन्द्र भगवान महावीर को विनती करने लगे। | महावीर इन्द्र से बोले
प्रभो ! आपका साधना पथ बहुत देवरान ! ऐसा कभी नहीं हुआ, और न कठिन है। अज्ञानी लोगों द्वारा कभी होगा कि अरिहंत (साधना काल में) बार-बार इस प्रकार के उपसर्ग
कष्टों से घबराकर किसी अन्य की आयेंगे। कृपाकर मुझे आपकी सेवा सहायता की इच्छा करे। तीर्थंकर तो अपने में साथ रहने का अवसर दीजिए।
आत्मबल व पुरुषार्थ के सहारे ही
सिद्धि प्राप्त करते हैं।
भगवान का उत्तर सुनकर देवराज नतमस्तक हो गये। उन्होंने सिद्धार्थ नामक व्यन्तर देव से कहा
प्रभु महावीर हमारी सेवा की इच्छा नहीं करते, किन्तु इनकी सेवा करना अपना कर्त्तव्य है। तुम प्रभु की सेवा में
सदा साथ रहोगे।
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भगवान की वन्दना करके इन्द्र चले गये।
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