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- करुणानिधान भगवान महावीर महाशुक्र कल्प से आयुष्य पूर्ण होने पर भगवान का नीव भरतक्षेत्र की रक्षा नगरी में राजा नितशत्रु की रानी भद्रा के पुत्र 'नन्दन' के रूप में जन्मे संध्या के बदलते रंग को देखकर राजकुमार नन्दन का मन संसार से विरक्त हो गया।
जिस तरह संध्या के रंग क्षण-क्षण बदल रहे हैं उसी तरह यह जीवन, सुख, भोग और आयुष्य अस्थिर है।
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राजकुमार नंदन ने दीक्षा ग्रहण कर ली।
बीस पवित्र स्थानों की बार-बार आराधना करते हुये तीर्थंकर नाम कर्म का बन्ध किया
वे कठिन तपस्या और ध्यान समाधि में लीन रहते।नन्दन मुनि ने एक लाख वर्ष तक निरन्तर ११८०६४५ मासखमण की उग्र तपस्या की। उनका शरीर अत्यन्त दुर्बल हो गया।
प्रवचनाविशनिदर्शनी
विनय
प्रभावना
सिद्ध भक्ति
॥श्रुत भक्ति
ज्ञानोपयोग
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अपूर्व ज्ञान
तपस्वी भक्ति
प्रवचन भक्ति
अरिहंत
भक्ति
शीलव्रत
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(बहुश्रुत भक्ति
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स्थविर भक्ति
संवेग भाव ||
वैयावृत्य
तपश्चरण ।
त्याग
नन्दन मुनि ने साठ दिन का अनशन कर देह त्यागी। वे दसवें स्वर्ग में देव हुये।
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