SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करुणानिधान भगवान महावीर असीम पुण्य बल का स्वामी प्रियमित्र युवा होने पर चक्रवर्ती सम्राट बना। वह प्रजा को पुत्र की तरह पालता था। साधु सन्तों की भक्ति और ग़रीबों की सेवा करके उसे आनन्द प्राप्त होता था । एक दिन मूका नगरी में पोट्टिलाचार्य नाम के आचार्य पधारे। प्रियमित्र चक्रवर्ती ने आचार्य श्री का स्वागत किया। प्रियमित्र ने पोट्टिलाचार्य का प्रवचन सुना। मार्मिक शब्द अंतःकरण को छू गये। मुनिवर ! मैं सांसारिक भोगों को त्यागकर तप-संयम की साधना करना चाहता हूँ। कृपया मुझे दीक्षित कीजिये । | पोट्टिलाचार्य ने उसे अपना शिष्य बना लिया। Jain Education International 20 CAM १९१९ For Private & Personal Use Only YOXOXO C C C C C C MESYUK Kam Car Ca 6779977 प्रियमित्र मुनि ने एक करोड़ वर्ष तक तप, ध्यान संयम आदि की आराधना की। दिन में सूर्य के सामने खड़े होकर आतापना लेते। रात में वस्त्र रहित वीरासन से ध्यान करते थे। अनशनपूर्वक शरीर त्याग कर महाशुक्र कल्प में देव बने। www.jainelibrary.org.
SR No.002809
Book TitleBhagvana Mahavira Diwakar Chitrakatha 009 010
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandramuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy