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चिंतामणि पार्श्वनाथ
मरुभूति के जाने की खबर मिलते ही कमठ को मौका मिल गया, वह मरुभूति के घर आ गया। रात में अचानक भेष बदल कर मरुभूति भी वापस आया और छुपकर दोनों की पाप-लीला देखी तो, उसे बहुत दुःख हुआ ।
मरुभूति का मन ग्लानि से भर उठा। उसने महाराज अरविंद से कमठ की शिकायत की।
"महाराज!' मुझे न्याय चाहिये। संसार में इसी प्रकार दुराचार बढ़ता रहा तो एक दिन हमारा समाज रसातल में चला जायेगा।
दुष्ट कमठ को पकड़ कर इसी समय हमारे
राजा को भी यह घटना सुनकर बहुत क्रोध आया। उन्होंने सैनिकों को आदेश दिया
सामने उपस्थित किया जाय
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ओह! जिस भाई को मैं पिता समान और पत्नी को देवी तुल्य मानता था। वे इतने पतित, छी छी!! कितने दगाबाज हैं ये नाते रिश्ते।
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कमठ को पकड़कर राज सभा में लाया गया। राजा ने भरे दरबार में उसे फटकारा
राज पुरोहित का बेटा होकर इतना नीच और दुराचारी हो
गया तू! मेरे राज्य में चोर और दुराचारी को एक ही दण्ड है मौत की सजा! किंतु तू ब्राह्मण पुत्र है इसलिए तुझे मृत्यु दण्ड नहीं दिया जा सकता।
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