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________________ पजसूई २०१ ७२६ ८६९ ५२ १०३२ ११५९ ८३२ ५५२ ५९७ ६६५ ८४४ ७१२ अह सो पसयच्छि सुवल्लहेहि अह सो मए गणेसो अह सो मए णराहिव अह सो मए वि भणिओ अह सो मए वि सहसा अह सो वि चिंतिओ अह सो विसजियासेस अह सो विहु वइरासंकिएहि अह सो सिंहासणकय अहिमुहजीहाजुयचंचलेण अंगं पवियंभियपुलयजाल अंगेहि मि अणवत्थट्टिएहि अंतद्धाणं सिद्धाहिवेण अंतोरमंतसुरसिद्ध अंबाट इमं सीसउ स आ आणंदबाहपडिरिपहि आणंदबाहपडिपूरियाई आणेकरयसयोहा आणेमि कंदमूलप्फलाई आबझंतफलुप्पंक आमुक्कायणमग्गो आमुक्काहरणपलहुइयंग आयासपल्लणुग्गयसेय आलाववइयराणंतरं च आलिहियइ जो वम्मह आवासझंभणारंभमुक्क आवासियबलसिजत आसण्णपरियणालावसंकिरी आ-सायरेकछत्तंक आसि तिवेयतिहोमगि आसि पसाहियचउजलहि ६४८ ४२९ ८८७ ४८५ १०२२ । इय इह इमीऍ कयणिच्छयाएँ ८०७ इय एमविहं पोरथिएहिँ ९५१ इय एमविहं भाउय दुस्सोयच्वं ४०८ इय एमविहं भाउय विचित्त इय एरिसम्मि सुंदरि १२२९ इय एरिसस्स सुंदरि इस एरिसं कुरंगच्छि १०५३ इय एरिसे समुल्लाववइयरे इय एव मए उवलक्खिऊण प्रवम्मि इय एवमए उवलक्खिऊण भणिया ३९९ इय एवमहं भणिऊण ६७ इय एवविहं पियसहि १३१४ इय एवविहो धम्मो दिट्ठो ३४६ इय एवं चिंतंतीऍ सो इय एवं बहुसो पलविऊण इय एवं बहुसो विलविऊण ६१५ इय एवं भणिरीए ३९५ इय एवं वसणपरंपराष्ट १०८० इय कीस तुमं णूमेसि ५९२ इय केण णिययविण्णाण इय गुरुजणमणरहियं इयं चिंतोयहिपडिओ इय जइ मरणमसंतं ११२५ इय जं जुजइ एवं विहम्मि ५४१ इय जं मं महसि महाणुभाव इय जा पसरइ पयडो १११८ इय जा ममाहिँ सो १२१ इय जा सुब्बइ एसो ४८१ इय जेट्टाणुक्कमबाहिराई इय जो जो से दीसह इय णियमइमेत्तमुणिजमाण ५८० इय तस्स कणयदेवालयस्स इय तस्स महापुहईसरस्स १३१९*१ इय तुह इमीट परवर इय तेण भणामि तुम ५३४ इय पढममजणारंभरहस इय महुमयमुइयासेस इयरा वि गिरीसरीयड ८२ ७२४ ६२२ ६७२ ७३७ ८८४ १८ १०८४ क २२४ इत्यंतरम्मि ते वि हु इमिणा असुहजियकम्म इमिणा णिसायरेण व इमिणा वि गवपओहर इमिणा सरएण ससी ७५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002796
Book TitleLilavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1966
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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