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________________ २०० लीलावईए १२२६ ३५२ ८४६ ५०४ ९३६ ६४३ . १०४६ ५८० . ८१३ . अल्लियइ जा विमाणं अह अल्लीणडाइणीसयसमूह अल्लीणो एकं प्रकदेस अवगूहिऊण धणियं णवर अवयरह भयवईओ अवराहसमुप्फुसणं अविरयरइकेलिपसंग अविरुज्झतं जं गुरुयणम्मि अविसष्टपुडजुयाणुब्भडुज्जुओ अविसष्टुं ते वयणं असमंजसपयणिक्खेववस असुरो वि सया मत्तो मत्तो असुहजियकम्माण वि अस्सत्थवरवदुंबर अह अण्णम्मि पहाए अह अयसमहासीहेण अह एकेकमकुलहर अह एत्थम्हतवोवण अह एरिसे पहाए अह एरिसे समुल्लाववइयरे अह एवं उवलक्खाविऊण अह एवं गहियत्था अह एवं जा पिसुणेइ अह एवं बहुसो मंतिऊण अह एवं विम्हयगयमणस्स अह एवं सप्परिहास अह किं पुणरुत्तपयंपिएण अह किं बहुणा तुह अह णवर तत्थ दोसो जं गिम्ह अह णवर तत्थ दोसो जं फलिह अह णवर तस्थ दोसो जं विय अह णहयलट्ठभायट्ठियम्मि अह णिवत्तविवाहो अह तक्खणेण णरवइ अह तस्थ मए भणिया अह तत्थ सुहासणकयपरिग्गहं अह तत्थ सुहासणकयपरिग्गहो णिजणं अह तत्थ सुहासणकयपरिगाहो सायरं ४३४ अह तस्स तेण कुवलय १९९६ अह तस्स महागिरिणो अह तस्स मुहाहि अह तं इमीष्ट भुयजुय अह तं कणयकवाड अह तं घेत्तूण णराहिवेण अह तं दट्टण मए सज्ज ६८० अह तं सहस ति णिसामिऊण अह तं सोऊण णराहिवेण १४६ अह ताएण वि पियसहि ७४३ | अह ताण दोसरहियं अह तिस्सा तेण तहि ૮૮૨ अह तेण पुच्छियाई १०३१ अह तेण समं गरवह अह तेण सहरिसं ६३७ अह तेणाहं णरवह ८७५ अह दीसि पयत्ता अह बंदियणुच्चरिओ ११०२ अहमत्थ तस्स उजाण ६३४ अह ववगयम्मि कुवलय १२५५ अहवा किं बहुणा शरिएण ५६१ अहवा ण को वि दोसो ८९३ अहवा ण तस्स दोसो अहवा सयं पबोहेमि तत्थ अह वेइसमुत्तिण्णस्स १०४ अह सरिसाए भाउय अह सम्वत्थाणपरिट्टिएण अह सा कमसो गुरु अह सा मए गराहिव ६२१ अह सा मए सकोऊहलेण अह सायरेण बहुसो अह सा सब्भुट्ठाणं णमिऊण ३२९ अह सुयणु सो गरिंदो ९६४ अह सो चिय जोइक्खो ९५२ अह सो इमीऍ पिययम ३६३ अह सो प्रकाष्ट समं १४३' अह सो तत्थ गरेंदो ९०८ अह सो तेण किसोयरि २३५ ९४४ २१४ ४५४ १०८७ ३७४ ९३९ २२३ ३०९ ६६४ ८६१ ६२ १०६४ १२८३ २६६ १२१२ ४२७ ९०६ १३२.*२ १४० १३११ ११६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002796
Book TitleLilavai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1966
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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