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________________ १९३९ शुश्राव मुनिभिः सार्धम् VII. 95.Ic , रजनीक्षये VII. 27.23b , राघवः श्रुत्वा II. 33.26c ,, , सर्वम् VII. 74.1c , रामचरितम् VII. 7I.14C , , , I6a रुचिरं गीतम् V. 4.10c रुदितस्वनम् VII. 4.27d लोकस्य समागतस्य II. 16.43b वचनं तदा IV. 31.22d सुमहत्प्रियम् VII. 66.12b , सुमहातेजाः VI. I0.8c , सुमहान्कोपात् VI. 55.18a , हनुमस्तित्र V. 55.29c शुश्रावान्तःपुरगतः IV. 15.IC शुश्रावासन्नमम्बरे V. 64.37d शुश्रुवुस्तस्य ये सर्वे VI. 49.30c शुश्रुवुस्ताः स्त्रियः सर्वाः II. 39.39c शुश्रुवुस्ते तदा घोषम् V. 57.19e शुश्रुवुस्तेऽपि गर्जितम् VI. 24.5b शुश्रुवुः काननौकसः V. 57.20b शुश्रुवे कलहध्वनिः VI.95.36f , चरतस्तस्य VI. 80.26c , चाग्रतः स्त्रीणाम् II. 40.29a , तत्र निःस्वनः II. 6.27b , तुमुलः स्वन: VI. 88.65b , दुन्दुभिस्वनः VI. 90.85b , मधुरध्वनिः VI. 128.30d ,, मधुरस्वनः VII. 26.9b ,, वननिर्झरे VI. 39.9d , शङ्खशब्दश्च VI. 57.29a , शतयोजनम् VI. 75.3rd शुश्रूषणपरा नित्यम् VII. 2.26c , मयि II. I16.7b शुश्रूषणपरायणा I. 33.13b ' शुश्रूषन्ते च वः शिष्याः II. 2.39c शुश्रूषमाणमेकाग्रम् II. 56.21c शुश्रूषमाणं तारस्य IV. 54.4c शुश्रूषमाणा ते नित्यम् II. 27.13a शुश्रूषमाणाः पितरम् I. 77.15a शुश्रूष मामिहस्थस्त्वम् II. 21.230 शुश्रूषा क्रियतां तावत् II. 24.13c शुश्रूषामपरे जनाः VII. 74.19d शुश्रूषामेव कुर्वीत II. 24.27c शुश्रूषार्थमरिंदमौ III. 12.8d शुश्रूषां गौरवं चैव II. 12.26a । शुश्रूषुर्जननी पुत्र II. 21.24a । शुश्रूषेच्च पितुर्यथा II. I9.26b शुश्रूषेयमपि स्वयम् III. II.34b शुष्ककाष्ठेर्भवेत्कार्यम् III. 33.18a शुष्कपर्णचयं यथा VII. 8.18d शुष्कमिन्धनमासाद्य V. 53.7c शुष्कं वनमिवाग्मिना III. 25.26d ,, वनमिवानल: V. 4I.IIb , समभवद्वक्रम् III. 36.22c शुष्काणि च बहूनि च IV. 25.14b शुष्का अशनी तथा I. 56.9b , रघुनन्दन I. 27.9d शुष्कांश्च विविधान्द्रुमान् II. 69.13b शुष्काः समग्रपत्रास्ते VI. I24.22a शुष्कन्धनमिवाकुलम् VII. I4.15b शुष्कन्धनमिवानल: VI. 78.12d शुष्कैर्वन्यैः समाकीर्णम् II. 55.14C शुष्यतीव च मे कण्ठः II. 69.I9c शुष्यन्ती रुदतीमेकाम् V. 19.8a शुष्यमाणजलाशयम् III. 64.61b शुष्यमाणानि तीरतः III. 35.23d शुष्यमाणेन भाषिता III. 55.36d शूद्रयोन्यां प्रजातोऽस्मि VII. 76.2a शूद्रं मां विद्धि काकुत्स्थ VII. 76.3c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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