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शिरसा वन्दनीयस्य II. 58.15c
, वन्द्य चरणों VII. 48.10c " , , , 49.13c ,, , धरणीम् VII. 44.Ila
" , , 48.20a
, धर्मात्मा VI. I0.22c ,, , मैथिलीम् VII. 46.18d , , राजानम् VII. 37.21c , , वैदेहीम् V. 39.6a ,, ,, संप्रणम्यैनाम् V. 67.32a शिरसां तुल्यवर्चसाम् VI. I07.57d शिरसि प्राहरद्वीर: VI. 70.2.4c शिरस्तत्प्रियदर्शनम् VI. 31.42b शिरस्तत्सशरासनम् VI. 31.39b शिरस्तालफलं यथा III. 29.Id शिरस्त्राणं च पातयत् VI. 98.15d शिरस्यञ्जलिमाधाय V. 33.2c
, 36.32c , 39.I3c VI. 128.za
VIJ. 33.6c शिरस्यभ्यहनच्छूरम् VII. 69.12c शिरस्यम्बरमास्थितः VI. 67.15d शिरस्याघ्राय चोवाच II. II8.13c
मैथिलीम् II. II).Id राघवम् II. 70.16d पादुके II. II5.12d
चाञ्जलिम् VII. 80.13d शिरस्य भिजधानाशु VI. 56.29c शिरस्युत्पलपत्राभा V. 46.220 शिरस्येकेन कर्णिना V. 44.70
,, बाणेन III. 28.27a शिरः करं च धुन्वान VII. 6.28c
,, कायादपाहरत् VI. 89.42b शिरःसु सुरभीनमी II. 93.13b
शिरःस्थाने कृतौ पादौ I. 46.17c शिरःस्नातजनैयुताम् II. 7.3d शिरांसि नर्दतां जदु: VI. 67.13c
, नव चाप्यस्य VII. 9.IIc , समरे शरैः VI. 43.27b
, सहसा जः VI. 75.63a शिरस्यिपातयत्रीणि III. 27.18a शिरांस्यभिहनिष्यन्ति V. 13.30c शिरांस्युप जहार यः III. 32.18b शिरीषाः शिंशया धवाः IV. I.SId शिरो जहार तदक्षः III. 26.9a ,, ,, धर्मात्मा VI. 90.28a ,, ज्वलितकुण्डलम् VI. 100.15b " " , 103.20b
VII. 7.20b , निःश्वस्य चासकृत् II. 35.1b शिरोभिर्दशभिर्वीरः V. 49.6a शिरोभर्धारयामासुः VII. 39.15c शिरोभिनिभृताचार: II. 45.27c शिरोभिर्भविता मही II. 23.33d शिरोभिर्वानरेन्द्राय IV. 39.4IC शिरोभिश्च प्रणम्यैनम् VI. 60.64c शिरोभिश्चरणौ स्पृष्ट्वा I. 33.Ic शिरोभिस्तं ववन्दिरे VI. II. I3b शिरोभिः परिपीडितो III. 55.35d
, पूर्णतण्डुलै: III. 16.17b
,, पृथुभिर्नागा: V. I.Iga शिरो मायामयं गृह्य VI. 31.8a शिलया गिरिमात्रया IV. 9.I9d शिलावर्षाणि राक्षसाः III. 25.34b शिलागृहैरवततम् V. 14.28a शिलागृहेरुन्मथितैस्तथा गृहै: V. 4I.Iyc शिलातलमिदं शुभम् VII. 26.26b शिलातलं प्राप्य यथा मृगेन्द्रः V. 5.7a | शिलातले पूर्वमुपोपविष्टा III. 63.12b
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