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________________ विवर्णा राक्षसा घोरा: VI. 51.roc विवर्णा शोककर्शिताम् VI. 127.49b विवर्णो मुखवर्णश्च VI. 55. Ira विवर्धमानं च हि माम् V. 67.33a विवर्तमानं बहुश: VI. 27.32a विवर्धमानो वीर्येण I. 55.20a विवर्धयति पक्षं च VI. 35.16c विवशस्तेन मोहितः III. 44.9b विवशं शोकसंतप्तम् III. 61.gc विवशा जनकात्मजा IV. 1. 105d ते हृता सीता III. 49.34c निर्जने सती VI. 118.7d "" " विवश विलन्निव IV. 60.5b विवस्वतस्तनूजस्य V. 3. 16a विवस्वान्कश्यपाज्जज्ञे I. 70.200 II. 110.6a ,, विवादपि न वृत्तः VI. 57.130 विवादो मे न रोचते V. 24.42d विवासन मकारणम् II. 54.21d विवासनं च रामस्य I. 1. 220 "" सौमित्रेः II. 75.4c विवासयति तापसम् II. 20.3od विवासयामास सुतम् I. 1. 23c विवासयितुमर्हति II. 33. Iod विवासाद्वासवोपमम् II. 63.2b विवासान्मयि राघवः V. 36.20b वित्रास्य रामं धर्मज्ञ II. 76.6c ,, सुभगा II. 43.3a विवाहमृषिसत्तमैः I. 69.13b विवाहं विधिपूर्वकम् I. 73.36d विवाहार्थ तवात्मजान् I. 73.5b विवाहे रघुमुख्यानाम् I. 73.38c विविक्तमपरापरम् I. 3. 20b विविक्तश्च महाबाहो III. 13.19c विविक्ते जलसंरृते IV. 25.37d " ار Jain Education International १०७५ विविक्ते विमले विश्व V. 1. 1670 विविक्तेषु च तीर्थेषु III. 11.52a विविक्तं सलिलान्विते I. 50.5d विविच्य स महाकपिः IV. 47.8b सह वानरै: IV. 47.9b विविधदुमकाननाम् II. 80.21b विविधद्रुमभूषितम् V. 1.193b विविधद्रुमभूषित: IV. 43. 17d विविधम मलशस्त्रभास्वरम् VI. 85.36a विविधस्य च माल्यस्य V. 11.32C विविधधरं चारु VI. III. 360 विविधं पुरुषर्षभ III. 74.17d " विविधैस्तैस्तैः II. 78.6c शोककर्शिता II. 66.2b विविधाकृतिरूपाणि V. 4. 10a विविधानद्भुतोपमान् IV. 51.3d विविधानस्रसंघातान् VI. 75.13a विविधानि च गौडानि VII. 92. 12a वासांसि V. 20.9c "3 बहूनि च IV. 25.31b विशालानि IV. 50.34a رو " " " " "3 सहस्त्रशः II. 75.43b विविधान्यपि यानानि II. 92.35a विविधाभिश्च भक्तिभि: V. 49.4d विविधानापन्न V. 57.9a विविधा मुदिता द्विजाः IV. 1. 100b विविधायुधधारिणः VII. 28.4b विविधायुधपाणयः V. 30. 27b विविधायुधहस्ता VI. 51.24a विविधा विविधैः पुष्पैः IV. 1. goa विविधाश्च क्रियास्तदा I. 53.24d परश्वधा: VI. 58.7d विविधांवरध्वनि VI. 4.63b विविधांश्व जलाशयान् V. 2. 12d वनस्पतीन् VI. 96.8d 13 " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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